
यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है। -1 यूहन्ना 1:9
मैं अक्सर चकित होती हूँ कि कैसे कोई मनुष्य एक दिन बिना परमेश्वर के रह सकता है। यदि मैं महसूस करती हूँ कि मैं परमेश्वर की निकट उपस्थिती को एक दिन के लिए खो रही हूँ या चुक रही हूँ तो मुश्किल से खड़ी हो सकती हूँ। मैं एक छोटी बच्ची के समान हूँ जिसने अपनी माँ को किसी भीड़ में खो दिया है। मैं केवल इतना कह सकती हूँ कि अपने माता पिता को वापस पाने का समय खर्च करूँ। प्रभु के साथ संगति के बाहर मैं नहीं होना चाहती हूँ। मुझें अपने जीवन के प्रत्येक दिन में उसके साथ रहना चाहिए।
अपने विवेक के द्वारा पवित्र आत्मा मुझे यह जानने देता है कि मैं कुछ ऐसा कर रही हूँ जो उसे दुःखित करता है या जो हमारी संगति में हस्तक्षेप करता है। वह मुझे दिखाता है कि यदि मैंने कुछ गलत किया है तो मुझे उस स्थान पर पहुँचने में सहायता करता है जहाँ मुझे होने की ज़रूरत है। वह मुझे बताता और कायल करता है परन्तु वह कभी भी मुझे दोषी नहीं ठहराता है।
यदि दोष भावना हमारे विवेक में भर रही है यह परमेश्वर की ओर से नहीं है। वह यीशु को हमारे लिए मरने हेतु, हमारे पापों की मूल्य चुकाने हेतु भेजता है। यीशु ने हमारे पापों और दोष को उठा लिया (यशायाह 53 देखिए)। हमें पाप से छुटना चाहिए और दोष भावना को नहीं रखना चाहिए। एक बार जब परमेश्वर हमारे पाप के जूए को तोड़ डालता है तो वह दोष की भावना को भी हटाता है। वह हमारे सब पापों और अधर्मों को क्षमा करने के लिए विश्वासयोग्य और धर्मी है। और हम सब प्रकार की अधार्मिकता से लगातार शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है।
हमारे जीवन के प्रत्येक दिन में हमें क्षमा की ज़रूरत है। पवित्र आत्मा पाप को पहचानने के लिए हमारे विवेक में चेतावनी की घण्टी बजाता है और वह हमें यीशु के लहू की सामथ्र्य देता है कि लगातार हमें पाप से शुद्ध करे और उसके सामने सही रखे।