“तुम पृथ्वी के नमक हो; परन्तु यदि नमक का स्वाद (उसकी ताकत, उसका गुण…) बिगड़ जाए, तो वह फिर किस वस्तु से नमकीन किया जाएंगा? फिर वह किसी काम का नहीं, केवल इसके कि बाहर फेंका जाए और मनुष्यों के पैरों तले रौंदा जाए।” -मत्ती 5:13
हमारे अधिकांश जीवन के लिए हममें से बहुत से लोग गलत रीति से प्रसन्नता पाने का प्रयास करते हैं। हम उसे पाने में ढूँढ़ते हैं परन्तु यह देने में पाया जाता है। प्रेम को अवश्य देना चाहिए, ऐसा करना प्रेम का स्वभाव है। “क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वह नष्ट न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।” (यूहन्ना 3:16)
लोगों की ज़रूरतें पूरा करने के द्वारा हम उनके प्रति पे्रम दिखाते हैं-भौतिक आवश्यकताएँ साथ साथ आत्मिक आवश्यकताएँ भी। उदारता कार्य रूप में प्रेम है, प्रेम किसी को बढ़ाना और उत्साहित करना, धैर्य, दयालुता, सौजन्यता, नम्रता, निस्वार्थता, अच्छे स्वभाव, और सज्जनता (श्रेष्ठ में विश्वास करना) और गंभीर में दिखाई देता है। हमें सक्रिय रूप से ऐसे मार्गो को ढूँढ़ना है जिसमें हम प्रेम दिखा सके, विशेष करके छोटी बातों में।
“तुम पृथ्वी के नमक हो; परन्तु यदि नमक का स्वाद बिगड़ जाए, तो वह फिर किस वस्तु से नमकीन किया जाएगा? फिर वह किसी काम का नहीं, केवल इसके कि बाहर फेंका जाए और मनुष्यों के पैरों तले रौंदा जाए।” (मत्ती 5:13) इस पद में यीशु कहता है कि हम पृथ्वी के नमक हैं, परन्तु यदि नमक अपना नमकीनपन खो दे तो वह किसी काम का नहीं।
मैं कहती हूँ कि प्रेम के बिना संपूर्ण जीवन स्वाद रहित है। यहाँ तक कि प्रेम का कार्य भी जो बाध्यता के कारण किया जाता है, जिसमें प्रेम की गंभीरता नहीं होती वह हमें खोखला बनाती है। प्रेम नमक है, जीवन की ऊर्जा है और प्रत्येक दिन सुबह उठने का कारण है।
हर दिन उत्तेजनापूर्ण हो सकता है यदि हम स्वयं को परमेश्वर के गुप्त एजेन्ट के रूप में देखें जो छुपकर छाया में खड़ा है ताकि उन स्वादरहित जीवनों में कुछ नमक का छिड़काव कर सके जिनसे हम सामना करते हैं।