
वह व्यक्ति दुचिता है और अपनी सारी बातों में चंचल है। – याकूब 1:8
मेरे और आपके पास हमारे भीतर दो बड़ी सूचनाओं के भण्डार हैं। पहला संसारिक सूचना जो हमारे मस्तिष्क से आती है। दूसरी आत्मिक सूचना है जो हमारे हृदय से आती है। एक किचड़युक्त प्रदुषित पानी है और दूसरा शुद्ध पीने का पानी है। यह हम पर है कि हम किस श्रोत से पीने जा रहे हैं। कुछ लोग दोनों श्रोत से पीने का प्रयास करते हैं। इसलिए परमेश्वर इसे दुचिता होना कहता है।
क्या आप जानते हैं कि दुचिता होने का अर्थ क्या है? इसका तात्पर्य है कि आपका मन आपसे कुछ कहने का प्रयास कर रहा है और आपकी आत्मा इसके ठीक विपरित कुछ कहने का प्रयास कर रही है। यह कहने के बजाए ‘‘मैं इस पर विश्वास नहीं करने जा रही हूँ क्योंकि यह एक झूठ है।” आप एक आग पर जा पड़ते हैं जहाँ पर दो विचारों के मध्य आगे पीछे होते रहते हैं।
यदि मैं और आप कभी प्रसन्न, जयवन्त और सफ़ल मसीही जीवन व्यतीत करने जा रहे हैं जो प्रभु हमसे चाहता है। हम यह निर्णय करने जा रहे हैं कि हम सूचना के किस सोते से पीने जा रहे हैं। हम अपने मन से नहीं परन्तु अपनी आत्मा से जीना सीखने जा रहे हैं।