
जब तू परमेश्वर के लिए मन्नत माने, तब उसके पूरा करने में विलम्ब न करना; क्योंकि वह मूर्खों से प्रसन्न नहीं होता। – सभोपदेशक 5:4-5
मैं हाल ही में एक ऐसी घटना में शामिल हुई जिसमें लोगों को समय से पहले हस्ताक्षर करना था यह सूचना देने के लिए कि वे शामिल हो रहे हैं या नहीं। हमसे नौ सौ लोगों ने कहा था कि वे आ रहे हैं और केवल सात सौ लोगों ने ऊपर हाथ उठाया। कुछ ही लोगों ने निरस्त करने या बताने की कोशिश की कि वे नहीं आ रहे हैं। समस्या के दो पहलू थे। पहला, उन्होंने अपने वचन को बनाए नहीं रखा और दूसरा, हमने नौ सौ लोगों के लिए खरीददारी की थी और खाना तैयार किया था। और चूँकि सात सौ लोग आए थे इसलिए बहुत सारा भोजन खराब हो गया।
हमारे समाज में यह एक बहुत बड़ी समस्या है। अधिकत्तर लोग जब कहते हैं कि वे इसे करेंगे तो इसके विषय में कुछ नहीं सोचते और बिना किसी अच्छे कारण के अपने मन को बदल लेते हैं यह महसूस किए बिना कि जो उन्होंने करने के लिए कहा उन्हें करना चाहिए। हमारे शब्द हमारे मौखिक संबंध है।
बिना विचार किए वादे मत कीजिए कि आप अनुकरण करने के लिए तैयार हैं या नहीं,। मुझे निश्चय है कि लगभग दो सौ लोगों के पास न आने के अच्छे कारण थे परन्तु उसी समान मुझे निश्चय है कि लोगों ने अपने वचन में बने रहने की ज़रूरत नहीं समझी। जब हम अपने वचन में बने रहते हैं चाहे यह ऐसा करना हमारे लिए असुविधाजनक हो यह अच्छे स्वभाव को दर्शाता है। हमें अपने आदर्श के विषय में चिन्तित होना चाहिए क्योंकि संसार हम जैसे लोगों को देख रहा है जो मसीही होने का दावा करते हैं। वे देखना चाहते हैं कि हम केवल बात ही करते हैं या जो हम विश्वास करते हैं उससे जीते भी हैं।