अपने शत्रुओं को आशीष देना

अपने शत्रुओं को आशीष देना

जो तुम्हें श्राप दें, उनको आशीष दो; जो तुम्हारा अपमान करें उनके लिए  प्रार्थना करो। जो तेरे एक गाल पर थप्पड़ मारे उसकी ओर दूसरा भी फेर  दे; और जो तेरी दोहर छीन ले, उसको कुरता लेने से भी न रोक। -लूका 6:28-29

यीशु इस बात में बहुत ही स्पष्ट था कि हमें उन लोगों के लिए प्रार्थना करना चाहिए जो हमें पीड़ा देते हैं। “परन्तु मैं तुम से कहता हूँ कि अपने बैरियों से प्रेम रखो और अपने सतानेवालों के लिए प्रार्थना करो” (मत्ती 5:44)। “जो तुम्हें श्राप दें, उनको आशीष दो; जो तुम्हारा अपमान करें, उनके लिए प्रार्थना करो (लूका 6:28)।”

जब मैं लोगों की सेवा करने लगी मैंने ध्यान दिया कि लोग अक्सर अपने शत्रुओं को क्षमा करने की उचित इच्छा व्यक्त करते हैं परन्तु यह भी स्वीकार करते हैं कि वे ऐसा करने में असमर्थ्य थे। मैंने उनके लिए उत्तर खोजने हेतु परमेश्वर के सामने प्रार्थना में बैठी और उसने मुझे एक संदेश दिया। “मेरे लोग क्षमा करना चाहते हैं परन्तु वे क्षमा के विषय में वचन का पालन नहीं कर रहे हैं।” प्रभु मुझे शत्रुओं के लिए प्रार्थना करने और उन्हें आशीष देने के विषय में दिखाए। बहुत से लोग अपने शत्रुओं को क्षमा करने का दावा करते हैं परन्तु वे उनके लिए प्रार्थना नहीं करते या नहीं करेंगे जो उनको पीड़ा देते हैं।

परमेश्वर से अपने दुव्र्यवहार करनेवालों के लिए दया करने के लिए कहिए न्याय नहीं। स्मरण रखें यदि आप दया बोते हैं तो आप दया काटेंगे (गलातियों 6:7 देखिए)। उनके लिए प्रार्थना करना जिसने हमारे प्रति गलत किया है, उन्हें एक पश्चाताप् के स्थान पर भी ले आएगा और उस नुकसान की समझ भी वह देगा जो वे दूसरों की कर रहे हैं। बिना इस प्रार्थना के वे धोखे में रहेंगे। शत्रुओं को आशीष देना और श्राप नहीं देना एक क्षमा की प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण भाग है। यदि आप अपने शत्रुओं के लिए प्रार्थना करना और उन्हें आशीष देना चाहते हैं तो आप रोमियों 12:21 को सक्रिय करेंगे। “बुराई से न हारो, परन्तु भलाई से बुराई को जीत लो।”

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