उसकी माता ने सेवकों से कहा, “जो कुछ वह तुम से कहे, वही करना।” -यूहन्ना 2:5
यीशु के प्रथम आश्चर्यकर्म तब हुए जब वह एक विवाह समारोह में भाग ले रहा था। जब विवाह का जोड़ा अपने मेहमानों की खातीरदारी करने के लिए दाखरस में कमी पाए, तब मरियम ने अपने पुत्र से इस परिस्थिती के विषय में कुछ करने के लिए कहा और सेवकों से कहा, “जो कुछ वह तुम से करने के लिए कहे, उसे करो।” यीशु ने उन्हें आज्ञा दी कि बहुत सारे पानी के बड़े बड़े बर्तनों को पानी से भर दें। जब उन्होंने ऐसा कर दिया, तो उन्होंने उस पानी को परोसने के लिए कहा जो तब तक अद्भुत रीति से दाखरस में बदल चुका था (यूहन्ना 2:1-11 देखिए)। उसके प्रति उनकी आज्ञाकारिता के कारण बहुत से लोगों की भौतिक ज़रूरतें पूरी हुई।
यदि आप अपने जीवन में एक आश्चर्यकर्म देखना चाह रहे हैं, तो यह सुनिश्चित करें कि आप आज्ञापालन के बीज को बो रहे हैं। क्योंकि प्रभु ने हम को प्रतिज्ञा दी है कि यदि हम उसमें भरोसा और विश्वास के साथ भयभीत के साथ ऐसा करते हैं तो हम निश्चय फसल काटेंगे। “हम भले काम करने में साहस न छोड़ें, क्योंकि यदि हम ढीले न हों तो ठीक समय पर कटनी काटेंगे।” (गलातियों 6:9)
कभी कभी जब हमारे सोचने के अनुसार बातें नहीं होती है, और जैसी हम शीघ्रता चाहते हैं उतनी शीघ्रता से प्रार्थना के ऊपर प्राप्त नहीं करते हैं तो हम यह विचार लाते हैं, “चूँकि परमेश्वर कुछ नहीं कर रहा है, इसलिए मैं न क्यों करूँ? यदि कोई परिणाम नहीं है तो मैं क्यों आज्ञाकारी बनी रहूँ?” ऐसे समय में हमें यह समझना है कि परमेश्वर हमेशा कार्य करता है। शायद हम उसे देख नहीं पा रहे हों, क्योंकि वह साधारणतः गुप्त में कार्य करता है।