न तो बल से न शक्ति से परन्तु मेरे आत्मा के द्वारा……सेनाओं के यहोवा का यही वचन है। -जकर्याह 4:6
‘‘मैं कुछ नही हूँ ।’’ मेरे मित्र सुधीर ने कहा। ‘‘इसके अलावा परमेश्वर के पास करोड़ों लोग हैं ध्यान देने के लिए, उनमें से कुछ की तुलना में मेरी समस्या बहुत तुच्छ प्रतीत होती है”।
उसके शब्दों ने मुझे झकझोर दिया। निश्चय ही परमेश्वर को करोड़ों लोगों का ध्यान रखना है पर वह एक ही समय पर सबका ध्यान रख सकता है।
सुधीर कुछ महत्वपूर्ण बात को समझ नहीं पाया था। परमेश्वर चाहता है कि हम सहायता माँगे-और अक्सर माँगे। इसे इस रीति से देखें। यदि शैतान लगातार हमारे मनों पर आक्रमण करता है, तो और किस तरह से हम स्वयं की रक्षा करेगें? हम लड़ेंगे- परन्तु हमारा प्रमुख हथियार तो परमेश्वर से सहायता के लिए चिल्लाना है कि उसकी सामर्थ हमारी बन जाए।
बहुत बार हम सोचते हैं कि हम ही स्वयं यह कर सकते हैं। कुछ हद तक यह सही हो सकता है, परन्तु यदि हम लगातार अपने मन के विरूद्ध शैतान के आक्रमण से लड़ने जा रहे हैं तो हमें यह अवश्य समझना है कि केवल इच्छाशक्ति से काम नहीं चलनेवाला है। हममें इतनी दीनता हो कि हम पवित्र आत्मा की ओर रूख करे और याचना करे कि वह हमें सामर्थी बनाए।
मैं समझती हूँ कि बहुत से लोग यह नहीं समझ पाते कि किस प्रकार प्रभु उनके जीवनों में प्रेमपूर्वक कार्य करता है। परमेश्वर न केवल हमसे एक पिता के समान प्यार करता है, बल्कि हमारे जीवन के प्रत्येक भाग के लिए वह ध्यान रखता है। हमारा स्वर्गीय पिता दखल देना और हमारी सहायता करना चाहता है, परन्तु वह इसके लिए निमंत्रण का इंतज़ार करता है। हम यह निमंत्रण जारी करते हैं और प्रार्थना के द्वारा परमेश्वर की सहायता के लिए द्वार खोलते हैं। परमेश्वर का वचन कहता है, ‘‘तुम्हे मिलता नहीं क्योंकि तुम माँगते नहीं।’’ याकूब 4:2 ।
शायद हम इस को इस प्रकार सोच सकते हैं। परमेश्वर सब समय हमें देखता है और वह उन परीक्षाओं, संघर्षो, कष्टों को जानता है जिनका हम सामना करते हैं- और हम सभी उनका सामना करते हैं । यदि हम यह सोचते हैं, कि हम स्वयं इनका सामना कर सकते हैं तो परमेश्वर कुछ नहीं करता है। किन्तु वह तैयार रहता है कि हमारी दोहाई देने पर वह हमारी सहायता के लिए कूद पड़े और पवित्र आत्मा से हमारे जीवन में कार्य करने के लिए कहता रहे।
हमारी विजय सही सोच से प्रारंभ होती है। हमें इस बात पर यकिन करना है कि परमेश्वर हमारी चिन्ता करता, कार्य करना चाहता और इंतजार करता है कि हम उसे पुकारें। जब हम उसे पुकारते हैं तो पिछले अध्ययनों से हम यह जानते हैं कि बल और शक्ति से नहीं पर पवित्र आत्मा के द्वारा विजय आती है।
उदाहरण के लिए व्यक्तिगत संगति की बात लें- प्रतिदिन प्रार्थना करने और वचन पढ़नें में समय व्यतीत करना। मसीही होने के कारण हम जानते हैं कि यही परमेश्वर चाहता है और आत्मिक परिपक्वता के लिए हमें यही चाहिए। जीवन के एक दौर में मैंने आत्मिक स्व आत्म-अनुशासन बनाने का प्रयास किया था। मैंने निर्णय लिया कि मैं प्रतिदिन प्रार्थना करूँगी और बाइबल पड़ूँगी। दो या तीन दिन मैं ऐसा कर पाती तब किसी न फिर कोई रूकावट आ जाती, किसी कारण चाहे वह मेरा परिवार हो या कलीसिया की कोई बात, इन छोटे कारणों से मेरा ध्यान विचलित हो ही जाता और मैं परमेश्वर की प्रतिदिन की संगति से दूर हो जाती।
एक दिन निराशा के मारे मैं चिल्ला उठी, ‘‘बिना आपकी सहायता के मैं इसमें कभी सफल नहीं हो सकती।’’ तभी पवित्र आत्मा आया और मेरे लिए आवश्यक आत्म-अनुशासन मुझे दिया। यह मानो ऐसा था कि परमेश्वर मुझे संघर्ष करते और स्वयं पर गुस्सा करते देख रहा है। परन्तु जैसे ही मैंने पुकारा पवित्र आत्मा मेरे बचाव के लिए आ उपस्थित हुआ। हम बहुत अधिक स्वतंत्र हैं और हम बहुत सारे गैरज़्रूरी तनाव से होकर गुज़रते हैं क्योंकि हम परमेश्वर की सहायता के बिना कार्य करने का प्रयास करते हैं।
आत्मा की सहायता से, मैं सीख रही हूँ – हाँ मैं अब भी सीख रही हूँ – कि मैं चुन सकती हूँ कि मुझे क्या सोचना है। मैं अपने विचारों को चुन सकती हूँ और मुझे इसमें सावधानी बरतने की आवश्यकता है। जब तक मैं परमेश्वर के साथ लगातार संगति में नहीं हूँ, तब तक में स्वस्थ और अस्वस्थ विचारों के मध्य फर्क महसूस नहीं कर पाउँगी। और यदि मैं फर्क नहीं जानूगी तो शैतान को मन के भीतर प्रवेश कर मुझे यातना देने का अवसर प्रदान करती हूँ। परमेश्वर के वचन का अध्ययन करने में भरपूर समय व्यतीत करें और आप शैतान के प्रत्येक झूठ को पहचान लेगें जो वह आपके मन में रोपित करना चाहता है।
प्रिय प्रेमी परमेश्वर, मैं ऐसी बातें सोचना चाहता हूँ जो आपको आदर देती हैं। मैं ऐसा मन चाहता हूँ जो पूर्ण रीति से आप पर केन्द्रित हो और जानती हूँ कि यह तब तक नहीं होगा जब तक मैं आपके साथ प्रतिदिन संगति न करूँ। पवित्र आत्मा मेरी सहायता कर, आज्ञाकारी बनने में और आपके साथ लगातार संगति रखने के लिए उत्सुक होने में मेरी सहायता करे। आमीन।