आत्मिक रूप से जीवित रहें

क्योंकि जीवन की आत्मा की व्यवस्था ने मसीह यीशु में मुझे पाप की, और मृत्यु की व्यवस्था से स्वतंत्र कर दिया। (रोमियों 8:2)

जब हम धर्म के सभी नियमों का पालन करके परमेश्वर के साथ संबंध बनाने की कोशिश करते हैं, तो हम बुरी तरह से विफल हो जाते हैं और हम हमेशा पराजित महसूस करते हैं। यीशु ने पूरी तरह से हमारे लिए व्यवस्था को पूरा किया, और उसने हमारे पाप और अधर्म के लिए परमेश्वर के प्रति हमारे कर्ज को अदा किया, उसका भुगतान किया। उसने हमारे कामों की बजाय, परमेश्वर पर विश्वास करने का हमारे लिए एक रास्ता खोला दिया।

यीशु ने कहा कि यदि हम उससे प्रेम करते हैं, तो हम उसकी आज्ञाओं को मानेंगे और उसका पालन करेंगे (यूहन्ना 14:15)। उसने यह नहीं कहा कि यदि हम उन सभी को पूरा करते हैं, तो वह हमें प्रेम करेगा। परमेश्‍वर पहले से ही हमसे प्रेम करते हैं, और वह चाहते हैं कि हम उनके प्रेम का प्रतिउत्तर स्वेच्छा से उसकी बात मानकर दें। वह यह भी चाहते हैं कि हमें पता होना चाहिए कि जब हम गलती करते हैं तो हम तुरंत और पूरी तरह से माफ हो सकते हैं।

पुरानी वाचा के तहत, पाप से आत्मिक मृत्यु आई, लेकिन प्रेम का नियम, जिसके तहत हम अब जीते हैं, हम में जीवन पैदा करता है। परमेश्वर का प्रेम अद्भुत है, और यह महसूस करना कि हर समय आदर्श प्रदर्शन करने का हम पर दबाव नहीं है, यह हमें उसकी उपस्थिति में आराम करने और उसकी आवाज सुनने में सक्षम करता है।


आज आप के लिए परमेश्वर का वचनः सलीब पर यीशु के कार्य ने आपके लिए परमेश्वर के साथ करीबी संगति का आनंद लेना संभव बनाया है।

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