आनंद प्रगट करना

आनंद प्रगट करना

पर आत्मा का फल प्रेम, आनंद, शांति, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता,  और संयम हैं; ऐसे ऐसे कामों के विरोध में कोई भी व्यवस्था नहीं। -गलातियों 5:22-23

संदेह और अविश्वास आनंद को चुरानेवाले हैं परन्तु सरल बालक समान विश्वास करना आनंद को लाता है जो हमारी आत्मा में पवित्र आत्मा के कारण बसता है जो हममें रहता है। जैसा कि हम गलतियों 5:22-23 में देखते हैं, पवित्र आत्मा के फलों में से एक आनंद है। इसलिए चूँकि हम पवित्र आत्मा के फलों से भरे हुए हैं, हम विश्वासिओं के आनंद को अभिव्यक्त करना और जीवन का आनंद उठाना चाहिए। हम इसे इस प्रकार से देख सकते हैं, आनंद व्यक्ति के गहरे से गहरे भाग में है जिसने यीशु को अपना उद्धारकर्ता स्वीकार किया है उसकी आत्मा में आनंद है। परन्तु यदि उसका प्राण (उसका मन, इच्छा शक्ति और भावनाएँ) चिंता, नकारात्मक विचार, तर्क, संदेह और अविश्वास, ऐसी नकारात्मक बातें एक ऐसी दीवार के रूप में बन जाती हैं, जो उसमें रहनेवाले आनंद के फल को प्रगट होने से रोकती है।

प्रेरित पतरस कहता है, कि अपनी सारी चिंता (व्याकुलता, चिंता और परेशानियाँ) प्रभु पे डाल दो (1 पतरस 5:7 देखिए)। पौलुस ने अपने दिनों के विश्वासियों को प्रोत्साहित किया, ‘‘किसी भी बात की चिंता मत करो; परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन और प्रार्थनाएँ विनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएँ। तब परमेश्वर की शांति, जो सारी समझ से परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी” (फिलिप्पियों 4:6-7)। अपने मन को प्रसन्नता और आनंद में विचारों से भरा रखिए जैसा आप परमेश्वर पे भरोसा रखते हैं। वह आपकी समस्याओं की चिंता करेगा।

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