
“प्रभु की आत्मा मुझ पर है, इसलिए कि उसने कंगालो को सुसमाचार सुनाने के लिए मेरा अभिषेक किया है, और मुझे इसलिए भेजा है कि बंदियों को छुटकारे का और अन्धों को दृष्टि पाने का सुसमाचार प्रचार करूँ और कूचले हुओं को छुड़ाऊँ, और प्रभु के प्रसन्न रहने के वर्ष का प्रचार करूँ।” -लूका 4:18-19
मैं एक दुव्र्यवहार की पृष्ठभूमि से आई। एक ऐसे परिवार में पली बढ़ी जहाँ पर अव्यवस्थाएँ थी। मेरा बचपन भय और यातना से भरा हुआ था। विशेषज्ञ कहते हैं कि एक बच्चे का व्यक्तित्व उसके जीवन के पहले पाँच वर्षों में बनाया जाता है। मेरा व्यक्तित्व बहुत मुसीबतों वाला था। मैं सुरक्षा की दिवारों के पीछे रहती थी जो पीड़ा देने वाले लोगों से बचाव के लिए बनाई थी। मैं लोगों को बाहर कर देती थी परन्तु मैं स्वयं को भी अंदर बंद कर लेती थी। मैं इतना अधिक भय से ग्रस्त थी कि जीवन का सामना करने का एकमात्र तरीका यह महसूस करना था कि यह मेरे नियन्त्रण में है और कोई भी मुझे पीड़ा नहीं दे सकता।
एक वयस्क रूप में मसीह के लिए जीने का प्रयास करते हुए मसीही जीवनशैली का अनुकरण करते हुए मैंने जाना कि मैं कहाँ से आई थी, परन्तु मैं ये नहीं जानती थी कि कहाँ जा रही हूँ। मैंने महसूस किया कि मेरा भविष्य हमेशा मेरे भूतकाल से प्रभावित होगा। मैंने सोचा कि कैसे कोई व्यक्ति जिसका ऐसा भूतकाल हो कभी भी सचमुच में सही होगा यह असंभव है। फिर भी यीशु ने कहा, वह उन लोगों की रक्षा करने आया है जो बीमार थे, टूटे हृदय के थे, घायल थे, और शोषित थे-वे जो विपत्तियों के द्वारा तोड़ दिए गए।
यीशु कैद खानों के द्वारों को खोलने के लिए और बन्धुओं को छुड़ाने के लिए आया। मैंने तब तक ऐसी कोई प्रगति नहीं की जब तक मैंने यह विश्वास करना प्रारंभ नहीं किया कि मैं स्वतन्त्र की जा सकती हूँ। मुझे अपने जीवन के लिए सकारात्मक दर्शन की आवश्यकता थी, मुझे विश्वास करना था कि मेरा भविष्य मेरे भूतकाल के द्वारा यहाँ तक कि वर्तमान के द्वारा भी निर्मित नहीं होता है।
शायद आपका एक दुखद भूतकाल रहा होगा। आप भी ऐसी परिस्थिती में होंगे जो बहुत ही अधिक नकारात्मक और निराश करनेवाली हों। आप ऐसी परिस्थिती का सामना कर रहे होंगे जो बहुत बुरे हों कि वे इतने बुरे हों कि आपको आपके पास आशा का कोई कारण नहीं है। परन्तु मैं साहसपूर्वक आपसे कहती हूँ कि आपका भविष्य आपके भूतकाल या आपके वर्तमान काल से निर्मित नहीं होता है!