अतः जैसे देह आत्मा बिना मरी हुई है, वैसा ही विश्वास भी (अपने) कर्म बिना मरा हुआ है। -याकूब 2:26
मसीहियों के रूप में यह महत्वपूर्ण है कि हम अपने कार्यों के द्वारा अपने विश्वास की घोषणा करें और केवल इसके द्वारा नहीं कि हम जो कहते हैं कि हम अपने हृदय में क्या विश्वास करते है। लोग अक्सर कहते हैं “मेरा हृदय सही है,” परन्तु लोग हमारे हृदय को नहीं पढ़ सकते हैं, वे हमारे कार्यों को ही देख सकते हैं। यह इसी प्रकार एक मूर्खतापूर्ण है जिस प्रकार एक मनुष्य अपनी पत्नी से कहता है, “तुम्हें जानना चाहिए कि मैं तुम से प्रेम करता हूँ, मैंने तुम से विवाह किया है।” क्या नहीं? फिर भी कभी भी वह उसके प्रति प्यार नहीं दिखाता या उसकी भावनाओं या मन में ऐसा कोई कारण नहीं होने देता है कि वह उस पर विश्वास करे।
यह महत्वपूर्ण है कि हम अपने कार्यों के द्वारा दिखाए कि हम अपने हृदय में क्या विश्वास करते हैं।