इसी प्रकार तुम सब मिलकर मसीह की देह हो, और अलग अलग उसके अंग हो। – 1 कुरिन्थियों 12:27
अपने आप से संतुष्ट होना और प्रसन्न होना अपने जीवन का आनंद उठाने की एक महत्वपूर्ण कुंजी है। मेरी पृष्ठभूमि के कारण अपने आप को और अपने होने के स्वीकार करने के क्षेत्र में बहुत सी कमज़ोरियाँ थी। मैं हमेशा स्वयं की तुलना दूसरों से किया करती, उनके प्रति और उनकी संपत्ति और योग्यताओं के प्रति ईष्र्यालु होती थी। मैं, मैं नहीं बन पाती थी। मैं प्रत्येक व्यक्ति से बचने का प्रयास करती थी।
मैं अकसर दबाव और निराशा महसूस करती थी क्योंकि मैं अपने वरदानों और बुलाहट के बाहर कार्य कर रही थी। मैंने जब अंततः जाना कि मैं तब तक कुछ नहीं कर सकती जब तक परमेश्वर इसे न ठहराए और इसे करने के लिए मुझे अभिषेक न दे तब मैं तनाव मुक्त होना और कहना प्रारंभ की, “मैं, मैं हूँ। मैं और कुछ नहीं हो सकती जब तक परमेश्वर मेरी सहायता न करे। मैं जितना श्रेष्ठ मैं बन सकती हूँ केवल उस पर ध्यान केंद्रित करने जा रही हूँ।”
परमेश्वर हममें से प्रत्येक को अद्वितीय बनाया है। उसने व्यक्तिगत रीति से आप को बनाया और आपको वरदान, प्रतिभाएँ, योग्यताएँ दी है। इसके विषय में सोचिएः संसार में और कोई भी ठीक आपके समान नहीं है। इसका तात्पर्य है कि किसी और के लिए जो बात उत्तम है, हो सकता है वह आपके लिए उत्तम न हो। अतः जब आप परमेश्वर से यह कहने की परीक्षा में पड़ते हैं, “मैं चाहता हूँ कि मैं किसी और के समान दिखूँ, या मैं चाहता हूँ कि मैं उनके समान यह या वह कर सकूँ, ” ऐसा न कहें। परमेश्वर ने आपको जैसा बनाया, होने के लिए बनाया है उससे संतुष्ट रहें। स्मरण रखें कि उसने आपको ठीक वैसा ही बनाया हैं जैसा वह चाहता है कि आप हों। यदि आप किसी और के समान बनने का प्रयास करते हैं, तो आप उस सुंदर जीवन को खो देंगे जो परमेश्वर ने विशेषकर आपके लिए ही बनाया है।