
यहोवा ने मूसा से कहा, ‘‘एक तेज़ विषवाले साँप की प्रतिमा बनवाकर खम्भे पर लटका; तब जो साँप से डसा हुआ उसको देख ले वह जीवित बचेगा।’’ -गिनती21:8
गिनती 21 में हम देखते हैं कि जब इस्राएली लोग जंगल में थे वे साँप की विपत्ति के कारण बहुत बड़ी संख्या में मर रहे थे जो उन पर उनके पाप के परिणाम के रूप आई थी। मूसा परमेश्वर के सामने गया और अपने मुँह के बल गिर गया और उसकी आराधना की। वह तुरन्त ही अपना ध्यान परमेश्वर की ओर लगाया स्वयं पर या और किसी पर नहीं कि समस्या का समाधान हो।
मैंने पाया है कि संपूर्ण बाइबल में जब लोगों की समस्याएँ हुई तो उन्होंने आराधना की। कम से कम वे जो विजयी रहे उन्होंने ऐसा किया। उन्होंने चिंता नहीं की उन्होंने आराधना की। आज मैं पूछती हूँ: क्या आप आराधना या चिंता करते हैं? मूसा ने परमेश्वर को खोजा कि साँप के साथ कैसे व्यवहार करना है। उसने अपनी योजना नहीं बनाई और परमेश्वर को उस पर आशीष देने के लिए नहीं कहा। उसने एक उत्तर की व्यर्थ कल्पना करने का प्रयास भी नहीं किया, न ही वह चिंता की, उसने आराधना किया। उसके कार्य ने परमेश्वर से एक उत्तर लाया।
हम जानते हैं कि उस खम्बे पर लटकाया हुआ पीतल का साँप क्रूस पर लटके हुए मसीह का प्रतिबिम्ब है जिसने हमारे पाप को अपने ऊपर उठा लिया। इसका संदेश आज भी समान हैः ‘‘यीशु की ओर देखो और जियो।’’ जो उसने किया है उस पर ध्यान दो, अपने पर नहीं ना ही उस पर जो आप ने जो किया है या जो कर सकते हैं।
आपकी समस्या चाहे कुछ भी हो उसका उत्तर चिंता नहीं करना है परन्तु आराधना करना है। परमेश्वर की आराधना करना प्रारंभ करो क्योंकि वह भला है और उसकी भलाई आपके जीवन में प्रगट होगी।