
“मत डर, क्योंकि तेरी आशा फिर नहीं टूटेगी; मत घबरा, क्योंकि तू फिर लज्जित न होगी और तुझ पर सियाही न छाएगी; क्योंकि तू अपनी जवानी की लज्जा भूल जाएगी, और अपने विधवापन की नामधराई को फिर स्मरण न करेगी। यशायाह 54:4
यह महत्वपूर्ण है कि हम खुद को गले लगाएं और स्वीकार करें। अपने आप से पूछें कि क्या आप खुद को पसंद करते हैं। अगर आप खुद को पसंद नहीं करते हैं, तो आपको किसी और को पसंद करने में मुश्किल होगी। यदि आप स्वयं से नाखुश हैं, तो आपको दूसरों के साथ परेशानी होगी।
जब हम प्रभु के साथ करीबी रिश्ते में होते हैं, तब हम निश्चिंत और सहज हो सकते हैं, यह जानते हुए कि हमारी स्वीकृति हमारे प्रदर्शन या सिद्ध व्यवहार पर आधारित नहीं है, बल्कि उस कार्य पर आधारित है जो मसीह ने हमारे लिए और हमारे अंदर किया है। यह यीशु के साथ हमारे व्यक्तिगत संबंधों पर आधारित है।
खुद को पसंद करने का सीधा सा मतलब है कि हम खुद को परमेश्वर की रचना के रूप में स्वीकार करते हैं। हमें खुद को पसंद करने और स्वीकार करने के लिए जो कुछ भी हम करते हैं उसे पसंद करने की आवश्यकता नहीं है। परमेश्वर हम से बिन शर्त प्रेम करता है, और जब हम गलतियां भी करते हैं तब भी हम उसकी संतान से कम नहीं होते हैं।
मैं आपको प्रोत्साहित करती हूं की आप हर सुबह खुद को आईने में देखें और कहें, “मैं खुद को पसंद करती हूं। मैं परमेश्वर की संतान हूं और वह मुझसे प्रेम करता है। मेरे पास वरदान और प्रतिभाएं हैं। मैं एक विशेष व्यक्ति हूं- और मैं खुद को पसंद करती हूं और स्वीकार करती हूं।” यदि आप ऐसा करते हैं और वास्तव में इस पर विश्वास रखते हैं, तो यह आपको उस व्यक्ति को स्वीकार करने के लिए मदद करने में अद्भुत काम करेगा जो होने के लिए परमेश्वर ने आपको बनाया है।
आप आपके अतीत के साथ शांति में रह सकते हैं, आपके वर्तमान के साथ संतुष्ट रह सकते हैं, और आपके भविष्य के बारे में सुनिश्चित रह सकते हैं, यह जानते हुए कि वे परमेश्वर के प्रेमपूर्ण हाथों में हैं।