जो मुझे सामर्थ्य देता है उसमें मैं सब कुछ कर सकता हूँ। -फिलिप्पियों4:13
हाल ही में मैंने एक कलीसिया पर एक चिन्ह देखा जिसमें लिखा था, ‘‘परमेश्वर पर भरोसा रखो, अपने में विश्वास करो और आप कुछ भी कर सकते हैं।’’ यह सही नहीं है।
मेरे जीवन में ऐसे समय थे जब मैं यह चिन्ह देखी होती और कहती ‘‘आमीन’’ परन्तु अब और नहीं। मैं और आप सचमुच में कुछ नहीं कर सकते हैं जो करना चाहते हैं। हम वह सब कुछ या कुछ भी नहीं कर सकते हैं जो हर कोई कर रहा है परन्तु हम वह सब कुछ कर सकते हैं जो परमेश्वर ने हमें करने के लिए बुलाया है। और हम कुछ भी हो सकते हैं जो परमेश्वर हमें होने के लिए कह सकता है।
हमें अवश्य ही इस क्षेत्र में संतुलन की ज़रूरत है। हम प्रेरक सम्मेलनों में जा सकते हैं और बहुत सारी भावनात्मक बातें सीख सकते हैं, ‘‘आप कुछ भी कर सकते हैं; सोचिए कि आप कर सकते हैं; विश्वास कीजिए कि आप कर सकते हैं, कहिए कि आप यह कर सकते हैं – आप यह कर सकते हैं!’’ यह कुछ हद तक सही है परन्तु यह मानवता पर आकर खत्म हो जाता है। हमें अपने विषय में वह कहना चाहिए जो वचन हमारे विषय में कहता है।
हम वह कर सकते हैं जो करने के लिए हमें बुलाया गया है जिसे करने के लिए हमें वरदान प्राप्त हैं। ऐसे रास्ते हैं जहाँ पर हम यह पहचान न सीख सकते हैं कि हम अपने जीवन पर कृपा के वरदानों को पहचानना सीख सकें।
मैंने इस विषय में स्वयं सीखा हैः जब मैं कुण्ठित होना प्रारंभ करती हूँ मैं जानती हूँ कि यह एक चिन्ह है कि मैं या तो अपने कार्य पर ध्यान देना बंद कर दी हूँ और मैं अब परमेश्वर के अनुग्रह को प्राप्त नहीं कर रही हूँ। या मैं कुछ ऐसा करने का प्रयास कर रही हूँ जिसे प्रारंभ करने के लिए कोई अनुग्रह नहीं था।