पर यदि जैसा वह ज्योति में है, वैसे ही हम भी (सच में) ज्योति में चलें, तो एक दूसरे से (सच्चा, अटूट) सहभागिता रखते हैं, और उसके पुत्र यीशु का लहू हमें सब पापों से शुद्ध (दूर) (पाप और उसके सभी रूपों और प्रभावों से दूर) करता है। -1 यूहन्ना 1:7
मैं इस पद का अंतिम भाग पंसद करती हूँ जो यीशु के लहू के विषय में कहता है जो हमें पाप से और उसके हर प्रकार के स्वभाव से शुद्ध करता है। मुझे इस बात से एक उदाहरण देने दीजिए कि यह किस प्रकार से प्रतिदिन के जीवन में काम करता है। यदि आपके फ्रिज में कोई चीज़ खराब हो गई हो, तो प्रत्येक बार जब आप दरवाज़ा खोलेंगे तो आपको पता चलेगा कि वह वहाँ रखा है, क्योंकि आपको उसकी गंध आएगी। हो सकता है आप नहीं जाने कि वह क्या है या ठीक कहाँ से बदबू आ रही है, परन्तु आप निश्चित होंगे कि कुछ न कुछ कहीं है।
मैं विश्वास करती हूँ कि हमारा जीवन भी इसी प्रकार हैं। यदि हममें कुछ सढ़ा हुआ है, तो वे जो हमारे निकट संपर्क में आते हैं, वे उसे सहते हैं, चाहे वे उसे जानते हों कि यह क्या है और यह क्यों ऐसा है वे उसकी “गंध” लेंगे या अनुभव करेंगे। 2 कुरिन्थियों 2:15 में प्रेरित पौलुस हम से कहता है कि “विश्वासियों के रूप में हम परमेश्वर के निकट उद्धार पानेवालों और नाश होनेवालों दोनों के लिए मसीह की सुगंध हैं।” दुर्भाग्य से यह विपरित रूप से भी कार्य करता है।
जब हममें कुछ होता है तो यह बंद कर दिया जाता है और खराब और नाश हो जाता है तो यह बिल्कुल पूर्ण रीति से एक अलग गंध देता है, जो हर किसी के द्वारा पहचाना जाता है। इसीलिए हमें स्वयं को खोलना और पवित्र आत्मा को भीतर आने और हमारे हृदयों को शुद्ध करने और उस चीज़ को निकालने देना है जो कुछ भी बुरी गंध का कारण बन रहा है। जब हम प्रभु के प्रति स्वयं को खोलते और उसे हमें शुद्ध करने देते और हमारे भीतर चंगा करने देते हैं तो हम स्वयं को बेहतर स्थिति में और अपने चारों ओर के सभी लोगों के साथ बेहतर स्थिति में पाते हैं। यह एक ही रात में नहीं होता है क्योंकि यह एक प्रक्रिया है; परन्तु यह एक बार में एक कदम बढ़ाने से होना प्रारंभ होता है।