उत्तरदायित्व?

उत्तरदायित्व?

तुम क्या सोचते हो? किसी मनुष्य के दो पुत्र थे; उसने पहिले के पास जाकर कहा; हे पुत्र, आज दाख की बारी में काम कर। उस ने उत्तर दिया, ‘‘मैं नहीं जाऊँगा’’, परंतु बाद में पछता कर गया। फिर दूसरे के पास जाकर ऐसा ही कहा, उस ने उत्तर दिया, जी हाँ जाता हूँ, परन्तु नहीं गया। इन दोनों में से किस ने पिता की इच्छा पूरी की? उन्होंने कहा, ‘‘पहिले ने’’: यीशु ने उन से कहा, ‘‘मैं तुम से सच कहता हूँ, कि महसूल लेनेवाले और वेश्याएँ तुम से पहले परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करते हैं।- मत्ती 21:28-31

कहानी सरल है। पिता अपने दो पुत्रों से अपने दाख की बारी मे काम करने को कहता है। एक ने मना किया, परन्तु बाद में उसका मन बदला और वह काम करने गया। दूसरे ने हाँ कहा, परन्तु वह कभी भी दाख की बारी मे नहीं गया। यीशु ने अपने श्रोताओं से पूछा, ‘‘किसने अपनी पिता की इच्छा को पूरा किया?’’ उत्तर स्पष्ट है।

यह इस कहानी के बहुत सारे सबक हैं। परन्तु उन में से एक उत्तरदायित्व के विषय में है। पिता ने दोनो पुत्रों से एक समान काम करने को कहा। एक ने हाँ कहा, परन्तु अपनी प्रतिज्ञा को उसने पूरा नहीं किया। इस प्रकार की गतिविधि आज मैं देखती हूँ। परमेश्वर लगातार लोगों को सेवा के लिये बुलाता है, परन्तु हर कोई नहीं जाता है। दूसरा बेटा उन लोगों के समान है, जो अपने जीवन में परमेश्वर की महान बुलाहट के विषय में बहुत उत्तेजित होता है और सब से चर्चा करता है। परन्तु साथ में कठिनाइयाँ आती हैं, आर्थिक बातें उन्हें रोक देती हैं, स्वस्थ संबन्धीत कारण उसे नीचे गिरा देती हैं – संक्षिप्त में परमेश्वर की बुलाहट के प्रति प्रतिक्रिया देने के अपने दायित्व का इनकार करने के लिये उन्हें बहुत से मार्ग मिल जाते हैं।

हम में से कुछ लोग उस पुत्र के समान हैं, जिस ने पहले मना किया। हम पहले प्रतिरोध करते हैं, क्योंकि हम अयोग्य, अशिक्षित, और काम को करने के लिये बराबरी में नही हैं। परन्तु क्रमशः हम समर्पित हो जाते हैं, और वहीं करते हैं जो परमेश्वर चाहता है।

दोनो में से किसने पिता की इच्छा को पूरा किया? यीशु ने पूछा। और सब लोग देख सकते थे कि उसी ने जिस ने पहले मना किया। शायद उसने मूल्य को जोड़ा या वह निश्चित हो जाना चाहता था कि वह विश्वासयोग्य रहे। पहले मना करने के कारण जो कुछ भी हों, अन्ततः उसने हाँ कहा। वह उत्तरदायी था। पुत्र की ओर देखें जिस ने जल्दी से हाँ कहा, परन्तु पिता ने जो कहा वह करने में वह पराजित हुआ। मैं इस प्रकार के बहुत लोगों से मिली हूँ। जब वे बुलाहट को उत्तर देते हैं तो बहुत उत्साहित होते हैं। परमेश्वर उन्हें उत्सुक करता है (और इसका न्याय करना मेरा काम नहीं है), परन्तु परमेश्वर उन्हें तुरन्त बाहर नहीं भेजता है, या बातें वैसी नहीं होंती हैं जैसे वे अपेक्षा करते हैं। इसलिये वे देरी का सामना करते हैं। वे इन्तजार करते हैं, और कुछ समय बाद वे अधैर्यवान हो जाते हैं।

यह बहुत महत्वपूर्ण समय होता है जहाँ उत्तरदायित्व अधिक गिना जाता है। परमेश्वर के इच्छा के प्रति सच्चे बने रहना जब कुछ भी घटित नहीं हो रहा हो। जब आप मन की युद्ध को लड़ते हैं तो आप स्वयं को पुनः यहीं पर पाएँगे। बुलाहट की उत्तेजना और महिमा के समय शैतान भी बगल में कदम रखता है, वह तब तक ठहरता है जब तक आप प्रसन्न करना शुरू नहीं करते। क्या मैंने परमेश्वर को ठीक से सुना ? क्या सच में परमेश्वर चाहता है मैं उसे करूँ?

उस पुत्र के समान जो पहले संघर्ष किया और तब हाँ कहा, आप ने भी पहले हाँ कहा, और तब आप उस काम को समाप्त करने का प्रयास करते हैं जिस के लिये आप स्वयं को समर्पित किया था। उत्तरदायित्व परमेश्वर के योग्यता के प्रति हमारी प्रतिक्रिया है। यदि आप उत्तरदायी होने जा रहे हैं, तब आपको परमेश्वर के द्वारा आपके सामने रखे जानेवाले अवसरों को प्रतिक्रिया अवश्य देना चाहिये। उत्तरदायित्व का मतलब है उस पर ठहरे रहना। अक्सर इसका अर्थ धीरज के साथ इन्तजार करना भी होता है। अब्राहम के समान हों, यद्यिपि उसे पच्चीस साल पूर्णता के लिये इन्तजार करना पड़ा। परमेश्वर ने ठीक वही किया जैसी उसने प्रतिज्ञा की थी।

बाइबल मे जवान यूसुफ ने स्वप्न देखा कि उसके पिता और उसके भाई उसके सामने जूक जाएँगे। इसके बावजूद उन्होंने उसे गढ़्हे में डाल दिया और उसे गुलामी में बेच दिया। परन्तु वह विश्वासयोग्य रहा। वह 17 साल का था जब उन्होंने उसे गुलामी में बेच डाला। वह तीस साल का था जब उसने उन्हें धनधान्य बेचा। यूसुफ ने अपने उत्तरदायित्व का समाना किया। उसने नकारात्मक परिस्थितियों का आदर करने से इनकार कर दिया और शैतान के सन्देहों पर ध्यान देने से उसने इनकार किया। वह परमेश्वर के प्रति अपना उत्तरदायित्व के प्रति समर्पित था।

तेरह साल बहुत लंबा समय लग सकता है, या तेरह दिन भी। लेकिन परमेश्वर समय की लम्बाई को नहीं गिनता है, यह उसकी अगुवाई के प्रति आपकी प्रतिक्रिया है। यदि परमेश्वर बात करता है, तो आपका उत्तरदायित्व अपने कानों को सन्देहों के प्रति बन्द करना और उन्हें केवल परमेश्वर के प्रति खोलना है।

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स्वर्गीय पिता, तेरे प्रति और तेरी योग्यता के प्रति हमेशा उत्तरदायी न होने के लिये मुझे क्षमा कर। बाधाओं और परिस्थितियो पर ध्यान केन्द्रित न करने के लिये मेरी सहायता कर। परन्तु तेरे प्रेम और बहुतायत के श्रोतों पर ध्यान केन्द्रित कर सकूँ। आपके संपूर्ण आज्ञाकारी पुत्र के नाम से माँगती हूँ। आमीन।।

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