उत्साहपूर्वक देना

उत्साहपूर्वक देना

…दिया करो, तो तुम्हें भी दिया जाएगा। लोग पूरा नाप दबा दबाकर और हिला  हिलाकर और उभरता हुआ तुम्हारी गोद में डालेंगे, क्योंकि जिस नाप  से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिए भी नापा जाएगा। -लूका 6:38

जब मैं और आप देते हैं तो हमें उदारपूर्वक और उत्सापूर्वक देना है। क्योंकि जिस प्रकार से हम देते हैं, उसी प्रकार से हम पाते भी हैं। जब हम अपने पर्स या जेब में देखते हैं तो हमें सब से छोटा नोट या सिक्का को बाहर नहीं निकालना है, इसके बजाए हमें बहुतायत से जैसे परमेश्वर देता है देना है।

अब मैं समझती हूँ कि कोई भी भेंट इतनी छोटी नहीं होती है, और कोई भी इतना बड़ा नहीं है। परन्तु उसी समय हमें देने में उत्साही होना सीखना चाहिए, जैसा हम मसीही जीवन के किसी अन्य पहलू के साथ करना होता है। मैं एक देनेवाली बनने की खोज करती हूँ। मैं हर समय देने की अभिलाषा करती हूँ।

एक समय में मैं मसीही किताबों के दुकान में थी और एक छोटी सी दान पेटी को देखा जो कि ऐसी सेवकाई में से एक थी जो भूखे बच्चों को भोजन खिलाती थी। उसके बगल में एक चिन्ह था जो इस प्रकार का था, “दो बच्चे पच्चीस रूपये से दो दिन तक भोजन कर सकते हैं।” मैंने अपना पर्स खोलकर कुछ दान देना चाहा जब भीतर से एक आवाज़ ने मुझ से कहा, “तुम्हें ये करने की ज़रूरत नहीं है, तुम सब समय देती हो।”

मैं तुरन्त हिंसक हो उठी, आत्मिक रूप से हिंसक! कोई भी बाहर नहीं जा सकता था परन्तु मैं भीतर ही भीतर उत्तेजित हो उठी। मैंने अपना पर्स खोला और कुछ धन निकाला और उस बॉक्स में डाल दिया। केवल यह प्रमाणित करने के लिए कि मैं अपनी स्वेच्छा से दे सकती हूँ!

आप भी ऐसा कर सकते हैं। जब कभी आप पीछे हटने की परीक्षा में पड़े, तब अधिक दें। शैतान को दिखा दें कि आप एक उत्साही दाता हैं!

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