
इसलिये जब कि उसके विश्राम में प्रवेश करने की प्रतिज्ञा अब तक है, तो हमें डरना चाहिए; ऐसा ने हो, कि तुम में से कोई जन उस से रहित जान पड़े। (इब्रानियों 4:1)।
जब मैं धार्मिकता पर सीखाती हूं, तब मैं निम्नलिखित दृष्टान्त का इस्तेमाल करना पसंद करती हूं, और मैं आपको भी इसकी एक कोशिश करने के लिए कहती हूं। एक कुरसी पर बैठें, फिर कुरसी में बैठने का प्रयास करें। मैं जानती हूं कि यह मूर्खता प्रतीत होता है, क्योंकि आप पहले से ही कुरसी पर बैठे हुए है। एक बार जब आप कुरसी पर है, तो आप जितना पहले ही है उससे ज्यादा इस में नहीं बैठ सकते है। वही विचार धार्मिकता पर भी लागू होता है। यीशु ने अपने बलिदान के द्वारा परमेश्वर के साथ हमारा मेल करा दिया है और हम जितना उसने हमें धर्मी बना दिया है उससे ज्यादा स्वयं को धर्मी नहीं बना सकते है। हमारे व्यवहार में तब तक सुधार नहीं हो सकता जब तक हम यीशु के द्वारा हमारी धार्मिकता को पूरी तरह स्वीकार नहीं करते। यीशु हमें धार्मिकता की गद्दी पर बिठाता है और हमें निश्चित होना सीखने और जो हम पहले से ही है वो बनने का प्रयास बंद करने की आवश्यकता है। मसीह को छोड़ कितने भी सही कार्यों की मात्रा हमें परमेश्वर के साथ सही नहीं बना सकती। इसी की पुष्टि करते हुए, पौलुस ने प्रार्थना की कि वो मसीह में पाया और जाना जा सके, उसकी अपनी धार्मिकता पर नहीं, पर केवल मसीह में विश्वास के द्वारा आने वाले सही मिलाप में (देखें फिलिप्पियों 3:9)।
जब हम सचमुच समझते कि हम स्वयं को धर्मी बनाने के लिए कुछ भी नहीं कर सकते, और यह कि हमें परमेश्वर के आगे कुछ प्रमाणित करने की जरूरत नहीं है, तब हम धार्मिकता के उस उपहार में आराम करने के योग्य होते है, जो यीशु ने हमें दी है – और वो हमें परमेश्वर में हमारी विनतियों और हमें उत्तर देने की उसकी इच्छा के भरोसे में साहसी बनाएगा। मैं जानती हूं कि परमेश्वर इसलिए मेरी प्रार्थनाओं को नहीं सुनता या उत्तर देता क्योंकि मैं अच्छी हूं; पर वो इसलिए सुनता और उत्तर देता क्योंकि वो अच्छा है!
आज आप के लिए परमेश्वर का वचनः जो आप है उससे प्रेम करें क्योंकि परमेश्वर ने आपको अपने हाथों से बनाया है।