उलझा हुआ मन

उलझा हुआ मन

पर यदि तुम में से किसी को बुद्धि की घटी हो, तो परमेश्वर से माँगे, जो बिना उलाहना दिए सब को उदारता से देता है; और उस को दी जाएगी। पर विश्वास से माँगे, और कुछ सन्देह करे; क्योंकि सन्देह करनेवाला समुद्र की लहर के समान है जो हवा से बहती और उछलती है। ऐसा मनुष्य यह समझे कि मुझे प्रभु से कुछ मिलेगा, वह व्यक्ति दुचिता है, और अपनी सारी बातों में चंचल है। – याकूब 1:5-8

मेरी मित्र इवा को किसी डकायती काण्ड के सम्बन्ध में न्याय पालिका में उपस्थित होने के लिए सम्मन मिला। दो दिनों तक लग भग बारह नागरिकों ने मुकद्दमे को सुना जहां पर आरोपी के विरोध प्रमाण जूटाए कि वह घर में घूसा और कइ्र चीजें चुराई। ईवा उसे दोषी ठहराने के लिए तैयार थी।

तीसरे दिन बचाव पक्ष के वकिल ने चित्र का दूसरा पहलू प्रस्तुत किया। जितना अधिक ईवा ने इस मुकद्दमें को सुना, वह भ्रमित हो गई। पहले पहल जो कुछ स्पष्ट दिख रहा था अब उसमें विरोधावास नजर आने लगा।

यद्यपि न्याय पालिका ने उस व्यक्ति को दोषी ठहराया था, परन्तु ईवा ने कहा कि सही निर्णय लेने में उसे बड़ा संघर्ष करना पड़ा। हर वकिल जब बात करता तो लगता है कि उसकी बात ज्यादा सही है। बहुत से मसीही दिन प्रतिदिन इसी समान जीते हैं। वे दो मन के हो जाते हैं, जैसे याकूब ने कहा। जब तक कुछ और नहीं हो जाता है, वे अपनी बात में स्थिर रहते हैं और उसके बाद वे दूसरी तरफ पलट जाते हैं।

अपने मन के दोहरेपन के वे एक विचार से दूसरे विचार में चले जाते हैं। वे निश्चिन्त होते हैं कि उन्हें मालूम है कि उन्हें क्या करना है और तब वे पुनः शुरू करते हैं। जैसे ही वे अपने निर्णय पर निश्चितता महसूस करते हैं, इसको पूरा करने की योजना उन्होंने बनाया है, वे शक करने लगते हैं कि वास्तव में वह सही है। वे लगातार शक करते हैं और तर्क वितर्क करते हैं। इस प्रकार का व्यवहार खुले मन के लोगो के समान नहीं होते हैं। खुले मन के होने का अर्थ है कि हम किसी मुद्दे के हर पहलू पर विचार करने के लिये तैयार हैं। जैसे न्याय पालिका में मुकद्दमें के हर पहलू को सुना जाता है। परन्तु क्रमशः हमें प्रमाणों में से या जीवन की परिस्थितियों में से देखना होता है, कि मै यह करने जा रही हूँ।

यह सुनने में अच्छा लगता है, परंतु बहुत से लोगो को निर्णय लेने में कठिनाई होती है। ‘‘क्या होगा यदि मैं गलती करूँ?’’ वे पूछते हैं। ‘‘क्या होता यदि मैं गलत चुनाव करता हूँ?’’ यह उचित प्रश्न है। परंतु इनका अर्थ यह नहीं है कि वे परमेश्वर के लोगो को लकवाग्रस्त कर दें और कार्य करने से रोक दें। बहुधा यह शैतान के हथियार होते हैं जो वह मसीहियों को विचलित करने और कार्य करने से रोकने के लिए इस्तेमाल करता है।

मैं इस विषय में एक विशेषज्ञ हूँ। बहुत वर्षों तक मैं एक दोहरे मन की व्यक्ति थी जैसे याकूब इसके विषय में लिखा। मैं इस प्रकार का होना नहीं चाहती थी। एक ही समस्या पर बार बार सोचने से बहुत ऊर्जा खर्च होती थी। परन्तु मैं एक गलती करने से बहुत डरती थी, और इसलिए मैं नहीं जान पायी कि अच्छे निर्णय कैसे लेते हैं। मुझे यह समझने में बहुत समय लगा कि शैतान ने मेरे विरूद्ध युद्ध की घोषणा कर रखी थी और मेरा मन उसका व्यक्तिगत युद्ध भूमि था। जागरूकता के उस क्षण में मैं हर विषय पर पूर्ण रीति से उलझ गई थी और मैं पूर्ण रीति से नहीं समझ पाई। परमेश्वर के बहुत से लोग आज भी वहीं पर हैं जहां पर मैं उस समय थी। वे अच्छे लोग हैं अर्थात उनके अन्दर स्थितियों को समझने और संबन्धों को और कारणों को समझने की क्षमता है। वे एक परिस्थिति के हर प्रकार के अमल को समझने का गम्भीरता पूर्वक प्रयास करते हैं, और तब वे अपने तर्क बुद्धि को इस्तेमाल करके सबसे उचित और तार्किक अर्थ को निकालते हैं।

बहुधा यहीं पर शैतान भीतर प्रवेश करता है और उन के लिए परमेश्वर की इच्छा को चुरा लेता है। परमेश्वर उनसे कह सकता है कि वे एक निश्चित कार्य करें और यह हमेशा एक उचित कार्य के समान नहीं लगेगा। यह शैतान को एक अवसर प्रदान करता है कि उन्हे प्रश्न करनेवाले-दुहरे मन के बनाएँ।

कभी कभी मैं महसूस करती हूँ कि परमेश्वर चाहता है कि मैं लोगों को कुछ – अक्सर कुछ कपड़े या आभूषण देने के द्वारा आशीष दूं।

कई अवसरों पर परमेश्वर चाहता है कि मैं अपना न पहना हुआ महंगा वस्त्र किसी को दे दूं। जब मैं साधारण स्वाभाविक सोच विचार की प्रक्रिया से होकर गुजरती हूँ तो यह बेहूदा लगता है पर जब मैं स्वयं को पवित्र आत्मा के प्रति खोलती हूँ तो मुझे निश्चय होता है कि यह सही कार्य है।

आपको भ्रमित करनेवाली स्वाभाविक सोच विचार की प्रक्रिया से मुक्त करने के लिए पवित्र आत्मा सदा उपलब्ध है। उससे माँगिए जो उदारतापूर्वक बुद्धि दान करता है। और वह आपको अनिर्णयाक होने से और दुहरे मन के होने से आपको मुक्त करेगा।

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प्रिय पिता, बीते समय में मैं भ्रमित और दो मन का था और स्वये पर शैतान को फायदा उठाने देता था। अब मैं विश्वास में तुझसे शैतान के सारे भ्रम पर विजय पाने के लिए आवश्यक बुद्धि माँगती हूँ। यीशु के नाम में, आमीन्।।

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