एक घायल हृदय

एक घायल हृदय

क्योंकि मैं दीन और दरिद्र हूँ, और मेरा हृदय घायल हुआ है। -भजन संहिता 109:22

क्या एक घायल हृदय का होना गलत है? नहीं, एक घायल हृदय का होना गलत नहीं है, परन्तु आपको उसे ठीक करने और आगे बढ़ने की ज़रूरत है। पुराना नियम कहता है यदि कोई याजक घाव हों या रक्त बह रहा हो वह सेवा नहीं कर सकता है। हाँ, मैं सोचती हूँ कि हमारे साथ बहुत घायल, चंगा करनेवाले है। इससे मेरा तात्पर्य है कि मसीह के देह में बहुत सारे लोग आज हैं, जो दूसरे लोगों की सेवा करने का प्रयास करते हैं परन्तु स्वयं में अभी भी पुराने हर एक घाव लेकर घूमते हैं। ये लोग अब भी रक्त बहाते और दूसरों को चोट पहुँचाते हैं।

क्या मैं यह कह रही हूँ कि ऐसे लोग सेवा नहीं कर सकते? नहीं, मैं कह रही हूँ कि उन्हें चंगा होने की ज़रूरत है। यीशु ने कहा कि अंधा अंधे को राह नहीं दिखा सकता, क्योंकि यदि वे ऐसा करते हैं वे दोनों कुएँ में गिर पड़ेंगे। इस कथन में एक संदेश है। इसका क्या उपयोग है कि मैं दूसरों को विजय दिलाने के लिए प्रयास करूँ यदि मेरे अपने जीवन में विजय न हो। मैं कैसे दूसरों को भावनात्मक चंगाई दे सकती हूँ यदि मेरे अपने में पुराने समय के भावनात्मक समस्याएँ अभी भी हल के बिना है?

उचित रीति से सेवा करने के लिए हमें परमेश्वर के पास जाने और सबसे पहले उसे हमें चंगा करने देने की ज़रूरत है। मैं सोचती हूँ कि हमें जाग उठने और यह समझने की ज़रूरत है कि परमेश्वर घायल, चंगा करनेवालों को नहीं ढूँढ़ रहा है। वह घायल लोगों को ढूँढ़ता है जिन्हें वह चंगा कर सके, और तब वे जाएँ और दूसरों को चंगाई दें। परमेश्वर लोगों को उपयोग में लाना पसंद करता है जो घायल रहे हों, क्योंकि कोई भी दूसरों की सेवा उनसे अच्छा नहीं कर सकते हैं। जिनके पास वही समान समस्या रही हो या उस व्यक्ति के समान परिस्थिती में रहे हों।

यदि हम अभी भी रक्त बहाते या अपनी ही चोट से ग्रसित हैं, हम दूसरों की समस्याओं का उसी समान उसका ही विश्वास के साथ नहीं कर सकते हैं जो हमारे पास तब होता जब हम उस पर परिस्थिती में स्वयं के साथ कार्य किए होते। अन्तिम पंक्ति ये है कि हमें परमेश्वर को हमें चंगा करने देना है ताकि वह हमें दूसरों को चंगाई देने के लिए उपयोग में ला सके।

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