एक महिमामय स्वतन्त्रता

एक महिमामय स्वतन्त्रता

यूहन्ना ने उत्तर दिया, जब तक मनुष्य को स्वर्ग से न दिया जाए (वह किसी वस्तु का दावा नहीं कर सकता, वह स्वयं कुछ नहीं ले सकता), तब तक वह कुछ नहीं पा सकता (एक मनुष्य को उसे स्वर्ग से प्रदत्त वरदान को प्राप्त करने के लिए संतुष्ट होना चाहिए)। – यूहन्ना 3:27

यूहन्ना के सुसमाचार के तीसरे अध्याय में यूहन्ना बपतिस्मा के शिष्य उसके पास आए और उसे विवरण दिया कि यीशु बपतिस्मा देना प्रारंभ कर रहा है जैसा यूहन्ना देता था और अब यूहन्ना के पास आने की तुलना में अधिक लोग यीशु के पास जा रहे थे। यह संदेश यूहन्ना के पास एक गलत आत्मा में ले जाया गया। यह उसे ईष्र्यालु करने के अभिप्राय से पहुँचाया गया। जो शिष्य यह संदेश या यह प्रतिवेदन लाया था वे निश्चय ही असुरक्षित थे और शैतान के द्वारा यूहन्ना के मन में यीशु के प्रति एक गलत भावना लाने के लिए झिंझोरने के प्रयास करने के लिए शैतान के द्वारा इस्तेमाल किया गया था।

ऊपर लिखित पद में यूहन्ना अपने शिष्यों से कह रहा था, जो कुछ यीशु कर रहा था वह ऐसा इसलिए था क्योंकि स्वर्ग ने उसे इस रीति से वरदान दिया था। यूहन्ना जानता था कि परमेश्वर ने उसे क्या करने के लिए बुलाया है और वह जानता था कि यीशु क्या करने के लिए बुलाया गया है। वह जानता था कि एक व्यक्ति अपनी बुलाहट और वरदान से बाहर नहीं जा सकता है। यूहन्ना अपने अनुयायियों से कह रहा था, ‘‘संतुष्ट हो।”वह जानता था कि परमेश्वर उसे उसके लिए मार्ग तैयार करने के लिए बुलाया था। और जब कि यीशु का सामने आने का समय आ गया था उसे लोगों के लिए कम दृश्य होना था।

यहाँ पर शिष्यों की कथन के प्रतिक्रिया के रूप में उनसे यूहन्ना के शब्द जो उस भीड़ के विषय में था जो यीशु के पीछे चल रहे थे। ‘‘अवश्य है कि वह बढ़े और मैं घटू (वह अधिकाधिक बढ़े और मैं कम होता जाऊँ)।”(यूहन्ना 3:30) कितनी महिमामय स्वतन्त्रता थी जिसका यूहन्ना ने आनंद उठाया! मसीह में सुरक्षित होना कितना अद्भुत है कि हमें किसी के साथ प्रतियोगिता नहीं रखनी है।

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