“तब यहोवा का यह वचन दूसरी बार योना के पास पहुँचा, उठकर उस बड़े नगर नीनवे को जा, और और जो बात मैं तुझसे कहूँगा उसका उसमें प्रचार कर।” -योना 3:1-2
योना की किताब में हम पढ़ते हैं कि कैसे योना को परमेश्वर ने नीनवे जाने और वहाँ के लोगों को पश्चाताप करने के लिए कहा। परन्तु योना नहीं चाहता था इसलिए वह तरसीश समस्या को चला गया जो भौगोलिग रूप से नीनवे की विपरित दिशा में है। परमेश्वर से भागना उसके साथ शांति बनाए रखने में हमारी सहायता नहीं करता है।
क्या होता है जब हम विपरित दिशा में जाते हैं जहाँ की ओर परमेश्वर हमें निर्देशित करता है? योना के साथ क्या हुआ? जब वह जहाज़ पर चढ़ा और अपनी दिशा में आगे बढ़ा एक आँधी आई। बहुत सारी आँधियाँ जिनका हम अपने जीवन में सामना करते हैं वे कठोरता के परिणाम होते हैं। बहुत सी परिस्थितियों में हम परमेश्वर की अगुवाई और आवाज़ के प्रति अनाज्ञाकारी होते हैं।
वह हिंसक आँधी जो योना के ऊपर आई उसने जहाज़ के पुरूषों को डरा दिया। उन्होंने यह देखने के लिए चिट्ठी डाली कि किसके कारण यह परेशानी आई और चिट्ठी योना के नाम निकली। वह जानता था कि उसने परमेश्वर की आज्ञा का उलंघन किया है। इसलिए उसने पुरूषों से कहा कि उसे उठाकर जहाज़ के बाहर फेंक दें ताकि उन्हें खतरे से छुटकारा दे सके।
जैसा उसने निवेदन किया था वैसा उन्होंने किया और आँधी रूक गई। और एक बड़ी मछली ने योना को निगल लिया। मछली के पेट से (एक सुखदायी जगह नहीं) उसने परमेश्वर को छुटकारे के लिए पुकारा और अपने कठोर मार्गों के लिए पश्चाताप किया। मछली ने उसे सुखी भूमि पर उगल लिया और योना की कहानी में हम देखते हैं योना 3:1 कि प्रभु का वचन योना के पास दूसरी बार आया। प्रभु ने उसे पुनः नीनवे जाने के लिए और वहाँ के लोगों को प्रचार करने के लिए कहा। चाहे हम कितनी ही देर परमेश्वर के निर्देशों का पालन न करें यह फिर भी वह हमारे साथ व्यवहार करता है जब हम दौड़ने से रूक जाते हैं।
परमेश्वर की इच्छा हमे असुविधाजनक हमें तभी कर सकती है जब हम उसका पीछा नहीं करते हैं। दूसरे शब्दों में हम हमेशा जानते हैं कि वे हमारे जीवन में कुछ सही कब नहीं होता है। क्रमशः हम देखते हैं कि परमेश्वर की इच्छा में होना अपनी इच्छा में नहीं। वही हमें शांति और आनंद देता है। हमें अपनी इच्छा को समर्पित करना है क्योंकि हमारे आत्म-केन्द्रित रास्तों में चलना कि हमें अप्रसन्न बनाए रखता है।