मैं मसीह में सच कहता हूँ, मैं झूठ नहीं बोल रहा और मेरा विवेक भी पवित्र आत्मा में गवाही देता है। -रोमियों 9:1
हम देखते हैं कि पौलुस ने पवित्र आत्मा के द्वारा उसके विवेक के प्रकाशित होने के विषय में बात की है। पौलुस अपने विवेक के द्वारा कह सकता था कि उसका व्यवहार परमेश्वर को स्वीकार योग्य है और मुझे निश्चय है कि वह ऐसा कर सकता था। उसी प्रकार जब ऐसा न हो तो इसे परखें। विवेक का यही कार्य है। पौलुस ने किसी के विवेक को साफ़ रखने के महत्व के विषय में बात किया। हमारे जीवन में पवित्र आत्मा के कामों में से एक मुख्य काम हम सभी को सत्य सिखाना, पाप के प्रति हमें कायल करना, और धार्मिकता के लिए हमें निश्चय दिलाना है। (यूहन्ना 16:8,13 देखिए)
इसिलिए मैं सदा अपने आप को प्रयोग में लाता और अनुशासित करता (अपने शरीर को वश में रखता, मेरी दैहिक अभिलाषाओं, शारीरिक क्षुधा, और सांसारिक इच्छाओं को मारता, हर प्रकार से प्रयत्न करता) हूँ ताकि परमेश्वर और मनुष्यों के प्रति शुद्ध (अडिग, बेदाग) विवेक रखूँ। – प्रेरितों 24:16
हम अपने जीवन में ज्ञात पाप रखकर उचित रूप से परमेश्वर की आराधना नहीं कर सकते हैं। पाप-स्वीकरण उचित आराधना से पूर्व आना चाहिए। अपराधबोध वाले व्यक्ति को शांति नहीं मिलती है। उसका विश्वास कार्य नहीं करता है इसलिए उसकी प्रार्थनाएँ सुनी नहीं जाती हैं। निम्नलिखित दो पद इस सच्चाई को प्रगट करते हैं।
विश्वास (संपूर्ण मानवीय व्यक्तित्व को पूरे भरोसे और दृढ़ता के साथ परमेश्वर पर डाल देना) और उस अच्छे विवके को थामे रह। जिसे अस्वीकार करने और दूर करने (उनके विवेक) के कारण कितने व्यक्तियों का विश्वास रूपी जहाज़ डूब गया। उन्हें अवश्य ही विश्वास के गुप्त भेदों को (जैसा कि मसीही सच्चाई अभक्त लोगों से छुपाई गयी हैं) शुद्ध विवेक के साथ प्राप्त करना चाहिए।– 1 तीमुथियुस 1:16
पर विश्वास के भेद को शुद्ध विवेक से सुरक्षित रखें। (मसीही का सत्य अधार्मिक व्यक्तियों से छुपा हुआ है) -1 तीमुथियुस