मार्ग मैं ही हूँ। -यूहन्ना 14:6
बहुत से लोग बहुत बुरी तरह चोटग्रस्त हो रहे हैं और वे सहायता के लिए पुकार रहे हैं। समस्या यह है वे उस सहायता को प्राप्त करना नहीं चाह रहे हैं जिसकी उन्हें परमेश्वर से आवश्यकता है। चाहे हमें कितनी भी अधिक सहायत चाहिए या ज़रूरत है हम उसे तब तक प्राप्त करेंगे जब तक हम उसे परमेश्वर की रीति से कार्य करने नहीं देंगे। यूहन्ना 14:6 में यीशु ने कहा, “मार्ग मैं ही हूँ।” यीशु ने जब कहा, “मार्ग मैं ही हूँ,” तब इसका तात्पर्य क्या था? इसका तात्पर्य यह था कि कुछ एक नई बातों को करने का उसका एक तरीका है और यदि हम उसके तरीकों में समर्पित होते हैं तो सब कुछ हमारे लिए कार्य करेगा।
परन्तु अक्सर हम उसके साथ मल्युद्ध करते और संघर्ष करते रहे हैं और प्रयास करते हैं कि वह हमारी रीति से कार्य करे, यह कार्य नहीं करता है। असंख्य समय लोग वे सामने वेदी पर खड़े हुए हैं और मुझ से हर प्रकार के भयावह बातें कहे हैं जो उनके जीवनों में चल रहा है और कितनी बुरी तरह वे चोट खा रहे हैं, फिर भी वे सहायता पाने के लिए उन बातों को करने के लिए पूरी तरह इंकार करते हैं जो उन्हें करने की ज़रूरत है। अक्सर लोग कुछ अन्य मार्ग पाने के लिए प्रयास करते हैं कि सहायता प्राप्त करें इसके बजाए की परमेश्वर के रीति पर कार्य करे।
बाइबल सीधी तौर पर सिखाती है कि यदि हम वचन पर कार्य करेंगे और सीखेंगे तो परमेश्वर हमारे जीवनों को आशीषित करेगा। मुझे आपको एक उदाहरण देने दीजिए, बाइबल सिखाती है कि हमें दूसरों के साथ शांति और सामन्जस्यता संबंध रखना है और उन्हें क्षमा करना है जो हमारे प्रति गलत करते हैं। यदि हम ऐसा करने से मना करते हैं, तो हमें जो ज़रूरत है उसे पाने की क्या आशा है?
मैं स्मरण करती हूँ कि मेरे लिए यह कितना कठिन था जब पहली बार प्रभु ने मुझ से कहा, कि मुझे अपने पति के पास जाना और कहना चाहिए कि उनके प्रति विद्रोही होने के लिए मुझे खेद है। मैंने सोचा कि मैं उसी क्षण मर जाऊँगी! मैंने समझा कि एक कारण है कि हम हमेशा वह नहीं करते हैं जो हमें परमेश्वर के वचन में करने के लिए कहा गया है, वह इसलिए है कि क्योंकि यह कठिन है। यदि हम वह नहीं करते हैं जो हम कर सकते हैं, तो परमेश्वर वह नहीं करेगा जो वह कर सकता है। यदि हम वह करेंगे जो हम कर सकते हैं, तो परमेश्वर वह करेगा जो हम नहीं कर सकते हैं। यह इतना ही सरल है।