यीशु ने उसको उत्तर दिया, “यदि कोई मुझ से प्रेम रखेगा, तो वह मेरे वचन को मानेगा, और मेरा पिता उससे प्रेम रखेगा, और हम उसके पास आएंगे, और उसके साथ वास करेंगे।” -यूहन्ना 14:23
जीवन व्यस्त है और विकर्षणों से भरा हुआ है। हमारी चिंताओं, कार्यों और फिक्रों में खो जाना इतना आसान है कि जो सबसे महत्वपूर्ण होता है हम उसे गवा देते है।
यहां पर लूका अध्याय दो के अंत में एक दिलचस्प कहानी है जब मरियम और यूसुफ यीशु को फसह के पर्व के लिए यरूशलेम लेकर जाते है जब वह बारह वर्ष का था। पर्व की समाप्ति पर, वे यह सोच कर कि वह उनके साथ ही है, वापिस घर की तरफ निकल पड़े।
मुझे अचम्भा होता कि कितनी बार हम जब अपनी ही मर्जी करने के लिए भटक जाते है तो हम सोचते है कि परमेश्वर हमारे साथ ही है?
यहां पर अब एक दिलचस्प भाग है। मरियम और यूसुफ को एक दिन की यात्रा के बाद पता चला कि यीशु उनके साथ नहीं था और फिर उसे खोजने में तीन दिन लग गए। तीन दिन! संदेश यहां पर यह है कि परमेश्वर की विशेष उपस्थिति को एक बार जब हम ने खो दिया तो वापस प्राप्त करने से ज्यादा खो देना आसान है।
हमें परमेश्वर की उपस्थिति में बने रहने के प्रति सावधान रहने की आवश्यकता है। जब हम ऐसा करते है, हम परमेश्वर को हमारे दिल में घर जैसा महसूस कराते है।
यह केवल उसके वचन के लिए आज्ञाकारी होने के साथ आरम्भ होता है। वह व्यवहार जो परमेश्वर को शोकित करता है, उससे मुड़ने का समर्पण आत्मिक परिपक्ता की पहली निशानी है। यह इस बात को दिखाता है कि जो वह सोचता है आप उसकी परवाह करते है।
इसका अर्थ है कि आप दूसरों के प्रति उदार होना चुनते है, आप क्षमा करना सीखते है, अपनी नराज़गी को छोड़ते और शांति में रहते है। जब हम हमारे शब्दों को इरादतन चुनते, परमेश्वर को धन्यवाद देते और अन्यों को ऊँचा उठाते हैं, हम सारा दिन परमेश्वर के साथ जुड़े महसूस करेंगे।
आरंभक प्रार्थना
पिता, मेरे दिल में आपका घर बनाने के लिए आपका धन्यवाद। प्रभु आज मुझे आपकी उपस्थिति की आवश्यकता है। मेरे विचारों और शब्दों के साथ आपका आदर करने में और जो मेरे आस-पास है उनके लिए एक आशीष होने में मेरी सहायता करें।