परन्तु परमेश्वर ने जगत के मूर्खो को चुन लिया है कि ज्ञानवानों को लज्जित करे, परमेश्वर ने जगत के निर्बलों को चुन लिया है कि बलवानों को लज्जित करे; और परमेश्वर ने जगत के नीचों और तुच्छों को, वरन् जो हैं भी नहीं उनको भी चुन लिया कि उन्हें जो हैं, व्यर्थ ठहराए। ताकि कोई प्राणी परमेश्वर के सामने घमण्ड न करने पाए। -1 कुरिन्थियों 1:27-29
जहाँ तक मैं जानती हूँ मसीह की शिक्षाएँ अहंकार (शरीर) को अनदेखा करने और आत्मा को गले लगाने के लिए सबसे श्रेष्ठ है। इसी ने मेरे लिए यह किया है।
संसार जिस चीज़ को अनुपयोगी कहकर फेंक देता है उसे परमेश्वर चुनता है। परमेश्वर की दृष्टि में कोई भी बात या कोई भी व्यक्ति आशारहित नहीं है। हम जैसे प्रत्येक उसकी विशेष सृष्टि हैं। यह एक दुर्घटना नहीं है और यदि हम उसे अवसर देते हैं वह सब कुछ को व्यवस्थित करता है जो बिगड़ गया है और कुछ बनने के लिए वह हमारी सहायता करता है, यहाँ तक कि हम प्रसन्न हो सकते हैं। अहंकार प्रतियोगिता और कलह को पैदा करता है और प्रथम स्थान पर रहने को इच्छुक रहता है; परन्तु कलह का बिन्दु क्या है? यह आपको क्या देता है? न संतुष्टि न आनंद।
यह आपको वह चीज़ नहीं देता है जो आपको चाहिए-अनन्त उद्धार और परमेश्वर के साथ शांति। यह प्राप्त करने के लिए आपको अहंकार को भूलना और आत्मा को गले लगाना है। और अक्सर यह करने का आसान समय जिसके पास होता है वह सामर्थी और धनी नहीं परन्तु नम्र होता है। ये वे हैं जो जानते हैं कि वे परमेश्वर के बिना कुछ भी नहीं हैं और इसमें उन्हें कोई समस्या भी नहीं है। ये वे हैं जिनके द्वारा परमेश्वर ने कार्य करने चुनाव किया है। आत्मा कलह के बजाए सहयोग और प्रेम लाता है क्योंकि एक मात्र सच्चा लक्ष्य परमेश्वर को जानना और तब दूसरों की सहायता प्रेम के द्वारा करना और यही बात करना है।