क्या करें जब कष्ट आते हैं

क्या करें जब कष्ट आते हैं

विश्वास की अच्छी कुश्ती लड़; -1 तीमुथियुस 6:12

जल्द या बाद में हम सब के जीवन में कुछ कष्ट आते हैं। हम सबके कुछ कष्ट और परेशानियाँ हैं। हर एक जन परख के समय से गुज़रता है और हर एक को पहले से आँधी बताकर नहीं आती है। कुछ दिन हम जाग सकते हैं और सोच सकते हैं कि सब कुछ अच्छा होने जा रहा है उस दिन का अंत होने के पहले हम सब प्रकार के कष्ट के द्वारा परखे जा सकते हैं जिनकी हम अपेक्षा नहीं कर रहे थे।

कष्ट जीवन का हिस्सा है इसलिए हमें उसके लिए तैयार रहना है। हमें कष्ट के प्रति एक योजनाबद्ध उत्तर देने की ज़रूरत है क्योंकि कष्ट आने के पश्चात् सामर्थी होना अधिक कठिन होता है। यह अच्छा है कि सामर्थी बने रहकर तैयार रहें।

जब कष्ट आता है तो जो पहली बात आपको करनी है वह है प्रार्थना। ‘‘परमेश्वर, मुझे भावनात्मक रूप से स्थिर रहने में सहायता कर।’’ आपकी भावनाएँ आपको चलाने न पाए। अगली बात जो आपको करने की ज़रूरत है वह परमेश्वर पर भरोसा रखना है। जैसे ही वह भय उत्पन्न होता है प्रार्थना करें।

भावनात्मक रूप से स्थिर रहें, परमेश्वर पर भरोसा रखें और प्रार्थना करें। जब आप इंतज़ार करते हैं कि परमेश्वर उत्तर दे भला करते रहें। अपने समर्पण को बनाके रखें केवल इसलिए प्रभु की सेवा करना बंद न कर दें कि आपकी एक समस्या है। परमेश्वर के प्रति अपने समर्पणों को बनाए रखने का सबसे अच्छा समय कठिनाई और मुसीबतों के बीच में है। जब शैतान देखता है कि कठिनाइयाँ और परेशानियाँ आपको रोक नहीं सकती है तो वह कुछ समय के लिए आपको कष्ट देना छोड़ देगा।

अगली बात के लिए तैयार होने हेतु आप अपने आपको कठिन परिस्थिती में पाते हैं तो यह कहने का अभ्यास करें, ‘‘मैं परमेश्वर के प्रति विश्वासयोग्य होने जा रही हूँ और परमेश्वर मेरी कठिनाई के लिए दुगुना भाग देने जा रहा है। शैतान तू ने सोचा कि तू मुझे पीड़ा देने जा रहा है, मैं दुगुनी आशीष पाने जा रही हूँ क्योंकि मैं प्रभु की खोज में लगी हूँ।’’

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