सब प्रकार की कड़वाहट, और प्रकोप और क्रोध (आवेग, रोष, बुरा स्वभाव), और कलह (उपद्रव, कोलाहल, विवाद, निन्दा बुरा बोलना, दुव्र्यवहार, और निंदक भाषा), और सब बैरभाव (द्वेष, बुरी इच्छा, या किसी प्रकार की नीचता) समेत तुम से दूर की जाए। एक दूसरे पर कृपालु और करूणामय (तरस से भरा, समझदार, प्रेमी हृदय वाला) हो, और जैसे परमेश्वर ने मसीह में तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी एक दूसरे के अपराध क्षमा (तैयारी से और सौजन्यता से) करो। -इफिसियों 4:31-32
बाइबल हमें सिखाती है कि क्षमा करने में हम ‘‘तैयारी और सौजन्यभाव” रखें। हमें क्षमा करने में संवेदनशील होना है, 1 पतरस 5:5 के अनुसार हमें यीशु मसीह के चरित्र को पहनना है अर्थात हमें सहनशील, धैर्यशाली, और कुरूणा से भरपूर होना है। करूणा शब्द के लिए मेरी परिभाषा यह है कि जो कार्य किया गया है उससे परे देखना और उस कार्य के कारण को खोजने की योग्यता रखना है। बहुत बार लोग ऐसे कार्य करते हैं, यहाँ तक कि वे स्वयं भी नहीं समझते हैं। परन्तु उस बात का हमेशा एक कारण होता है कि लोग ऐसा व्यवहार क्यों करते हैं।
विश्वासियों के रूप में हमारे साथ भी यह बात सत्य है। हमें करूणामय और क्षमावान होना है, ठीक उसी प्रकार जैसे मसीह यीशु में परमेश्वर हमारे गलत कार्यों को क्षमा करता है-तब भी जब हम नहीं समझते हैं कि जो हम करते हैं वह क्यों करते हैं। बाइबल सिखाती है कि शैतान हमारा फायदा न उठाने पाए, इसलिए हमें क्षमा करना है। इसलिए जब हम दूसरों को क्षमा करते हैं तो न केवल हम उनसे अनुग्रह करते हैं। इस प्रकार स्वयं पर अनुग्रह करने का कारण है, क्योंकि क्षमा न करना हमारे अंदर कड़वाहट की जड़ को उत्पन्न करता है, जो संपूर्ण व्यवस्था को ज़हरिला करता है। जितना अधिक हम इस कड़वाहट को बढ़ने की अनुमति देते हैं उतना ही सामर्थी यह बनता जाता है, और उतना ही यह संपूर्ण अस्तित्व को विकसित करता है। हमारे व्यक्त्वि, हमारा स्वभाव, हमारे व्यवहार, हमारे नज़रिया और विशेष करके परमेश्वर के साथ हमारा संबंध।
शैतान को आपका फ़ायदा उठाने देने से रोकने के लिए आप क्षमा कीजिए। अपने ऊपर अनुग्रह कीजिए और अपराध को जाने दीजिए। स्वयं को ज़हरीला होने से और उसके कैद में आने से बचाने के लिए क्षमा कीजिए।