
हे हमारे परमेश्वर, क्या तू उनका न्याय न करेगा? यह जो बड़ी भीड़ हम पर चढ़ाई कर रही है, उसके सामने हमारा तो बस नहीं चलता और हमें कुछ सूझता नहीं कि क्या करना चाहिए? परन्तु हमारी आँख तेरी ओर लगी हैं। -2 इतिहास 20:12
यहाँ पर यहोशापात समस्या के साथ व्यवहार करने की अपनी पूर्ण अक्षमता को परमेश्वर के सम्मुख खुले रूप से स्वीकार करता है। वर्षों तक मैंने स्वयं को बदलने का कठोर प्रयास बिना सफलता के किया है। मैंने बहुत प्रयास किया और इसमें लम्बे समय तक कि गलत आदतों को तोड़ दूँ केवल बार बार पराजित होने के लिए। मैंने जीवन में विभिन्न बातों को बदलने का प्रयास किया, समृद्धि पाने का प्रयास किया, अपनी सेवकाई को बढ़ाने का प्रयास किया, और चंगे होने का प्रयास किया। मैं केवल इसलिए हार मान लेने की इच्छा स्मरण करती हूँ कि मैं अपनी लड़ाई को लड़ाई का प्रयास करते हुए बहुत अधिक परेशान हो गई थी। मैं उन सबसे एक निरन्तरता से गुज़रती रही जब तक कि एक दिन मैं वास्तव में इसके विषय में नाटकीय रूप से हो गई और परमेश्वर को प्रभावित करने का प्रयास किया कि मैं कितनी अधिक दुर्दशा में थी। मैंने कुछ इस प्रकार से कहा, ‘‘परमेश्वर यह मेरा था। यह यही है। मैं इसमें हूँ। जो कुछ मैं कर रही हूँ वह कार्य नहीं कर रहा है। मैं हार मानती हूँ। मैं अब कभी इसे करने नहीं जा रही हूँ।’’
उसी समय मेरे भीतर कहीं गहराईयों में मैंने पवित्र आत्मा को कहते हुए सुना, ‘‘सचमुच में?’’ उसकी आवाज़ में सचमुच उत्तेजना थी। क्योंकि एक मात्र समय जब वह हममें कार्य करना प्रारंभ करता है तब जब हम बहुत अधिक तंग हो जाते हैं कि अन्ततः निर्णय लेते हैं। ‘‘स्वयं इसे करने के बजाए मैं हार मानने और परमेश्वर को इसे परमेश्वर होने देने जा रही हूँ।’’ परमेश्वर होने का प्रयास करना आपको जल्द ही थका देगा। क्यों न हम अपने स्वयं के प्रयासों से हार मानते और वह करते जो 12 पद में यहोशापात ने किया? परमेश्वर से स्वीकार करें कि आपके पास आपके शत्रुओं के विरूद्ध में खड़े होने की ताकत नहीं है और आप नहीं जानते कि क्या करना है। परन्तु आप उसकी ओर छुड़ौती और दिशा निर्देश के लिए देखते हैं।