मैं तुम्हें शांति दिए जाता हूँ, अपनी शांति तुम्हें देता हूँ; जैसे संसार देता है, मैं तुम्हें नहीं देताः तुम्हारा मन व्याकुल न हो और न डरे। – यूहन्ना 14:27
क्रूस की ओर जाने से ठीक पहले, यीशु ने अपने शिष्यों से कहा कि वह उनके लिए उपहार छोड़ कर जा रहा है – अपने पुनरुत्थान के पश्चात् वह पुनः उन पर प्रगट हुआ, और पहली बात जो उसने उनसे कही, वह थी, “तुम्हे शांति मिले!” (यूहन्ना 20:19)। उन्हें प्रमाण देने के लिए कि वह कौन है उसने उन्हें अपने हाथों को दिखाए और एक बार पुनः उनसे कहा, “तुम्हें शांति मिले!” (पद 21)। आठ दिनों के पश्चात् वह पुनः उन पर प्रगट हुआ और पुनः उनसे उसके प्रथम शब्द “तुम्हें शांति मिले!”। (पद 26)
निश्चय ही यीशु चाहता है कि चारों तरफ़ उस समय जो कुछ भी हो रहा हो उसके बावजूद उसके अनुयायी शांति में जिए। अपने शिष्यों – और हमसे – जो वह कह रहा था वह मात्र यह था, “अपने आप को व्याकुल, चिंतित, और परेशान होने मत दो।”
भजन संहिता 42:5 में भजनकार पूछता है, “हे मेरे प्राण तू क्यों गिरा जाता है? तू अंदर ही अंदर क्यों व्याकुल है? परमेश्वर पर आशा लगाए रह; क्योंकि मैं उसके दर्शन से उद्धार पाकर फिर उसका धन्यवाद करूँगा।”
जब हम चिंतित, परेशान, पतित, या भीतर अशांत होना प्रारंभ करते हैं, हमें परमेश्वर में आशा रखने की और उम्मीद के साथ उसकी बाट जोहने की आवश्यकता है जो हमारा सहायक और हमारा परमेश्वर है।