(यीशु ने कहा)
दोष मत लगाओ, कि तुम पर भी दोष न लगाया जाए। क्योंकि जिस प्रकार तुम दोष लगाते हो, उसी प्रकार तुम पर भी दोष लगाया जाएगा; और जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिये भी नापा जाएगा।- मत्ती 7:1-2
मैं विश्वास करती हूँ कि किसी को दोषी ठहराते हुए उसकी तरफ उँगली उठाना, ईसाई लोगों के लिये अक्सर अपनी कमजोरी को छुपाने का एक तरीका है। मानो उनका सिद्धान्त है, दूसरों को दोषी ठहराओ इससे पहले कि वे तुम्हें दोषी ठहराने का अवसर प्राप्त करें’’। मैं अपने पड़ोस की एक लड़की को स्मरण करती हूँ, जो लगातार मोठे लोगों की ओर उँगली उठाती थी, और उनके विषय में भयानक बातें कहती थी। वह स्वयं गोल-मटोल थी, और मैं अक्सर सोचती थी कि क्या वह दूसरों की आलोचना करती है कि लोग उसके वजन पर ध्यान न दे।
मैं एक ऐसे परिवार में पली बढ़ी जहाँ पर दोषी ठहराना और आलोचना करना दिनचर्या का भाग था। इसलिए मैं यह निर्णय करने में एक विशेषज्ञ बन गई थी कि अन्य लोगों को कैसे जीना चाहिये। शैतान हमें दूसरों की गलती पर मनन करते हुए और उनको न्याय करते हुए मानसिक रूप से व्यस्त रखना पसन्द करता है। दूसरों की कमी घटी देखना बहुत ही आसान है, विशेष करके तब जब हम उन्हीं की खोज में रहते हैं।
एक समय था, जब मैं मौल में जाकर बैठती थी और लोगों की चाल को देखा करती थी। मैं प्रायः उन में से लगभग सभों की चाल में कुछ ना कुछ गलती ढूँढ़ लेती थी। मैं लोगो के खराब बालों का स्टाईल, पुराने फैशन के कपड़े और अन्य प्रकार के समस्याएँ गिना करती। जब हम दोषी ठहराने का चुनाव करते हैं तो हम पाते हैं कि इसकी संभावनाओं का कोई अन्त नहीं है।
जो शब्द मैंने इस्तेमाल किया है, ‘‘दोषी ठहराने का चुनाव करना’’ उस पर ध्यान दीजिये। क्योंकि मैं वास्तव में ऐसा ही किया करती थी। यदि किसी ने मुझे न्याय करनेवाली या आलोचनात्मक व्यक्ति कहता तो मैं अस्वीकार कर देता, क्योंकि मैं अपने नकारात्मक स्वभाव से परिचित नहीं थी। मैं सोचती थी कि मैं अपना मासुम विचार दे रही हूँ। उस समय मैं नहीं जानती थी कि मेरे विचारों का चुनाव मेरे पास है।
एक और बात जो मैंने उस समय नहीं सोचा था वह मेरे विचारों की व्यर्थता। दूसरे लोगो की कमी घटियों को बताने के द्वारा मैंने अपने किसी भी मित्र की सहायता नहीं की। अब मैं जानती हूँ कि हम उन विचारों को चुन सकते हैं जिन पर हम ध्यान केन्द्रित करना चाहते हैं। हमेशा हमारे मन में जो विचार आते हैं उनका हम हमेशा चुनाव नहीं कर सकते हैं, परन्तु हम यह निर्णय कर सकते हैं कि हम उन्हें अपने मन में रहने देंगे या उसे बाहर निकाल देंगे। मुझे कुछ समय लगा, लेकिन अंत में मैंने यह सिखा कि जब शैतान हमारे मन में वे कठोर, अकृपालु और दोषी ठहरानेवाले विचार लाते हैं, तो परमेश्वर की वचन की सहायता से हम उसे बाहर निकाल सकते हैं। हमारे विचारों को सही रीति से केन्द्रित करने के लिये फिलिप्पियों 4:8 के अलावा और कोई अच्छा पद हमारे पास दोहराने के लिये नहीं है। …जो जो बातें सत्य है, और जो जो बातें सुहावरी है, और जो जो बातें मनभावनी है, अर्थात् जो भी सद्गुण और प्रशंसा की बाते है उन पर ध्यान लगाया करो।
दूसरों का न्याय करने के कारण मैं बहुत वर्षों तक दुर्दशा से होकर गुजरती रही। मुझे यह कहने की आवश्यकता थी कि अन्य लोग क्या करते थे या कैसे वह सीखते थे? यह मेरी समस्या नहीं थी। निश्चय ही यह मेरा काम नहीं था, परन्तु नकारात्मक विचारों को उन सभी अच्छे विचारों से बदलने में मुझे बहुत समय लगा।
इस प्रक्रिया के दौरान मेरे आलोचनात्मक आत्मा के लिये परमेश्वर मुझे उत्तरदायी ठहराना शुरू किया, और उसने पौलुस के उन शब्दों को मेरे सामने लाया ‘‘तू अपने भाई पर क्यों दोष लगाता है? या तू फिर क्यों अपने भाई को तुच्छ जानता है? हम सब के सब परमेश्वर के न्याय सिंहासन के सामने खड़े होंगे। सो हम में से हर एक परमेश्वर को अपना अपना लेखा देगा। सो आगे हम एक दूसरे पर दोष न लगाएँ दोष और न्याय न करे, पर तुम यही ठान लो कि कोई अपने भाई के सामने ठेस या ठोकर खाने का कारण न रखे।’’ (रोमियों 14:10; 12-13)।
हम कौन हैं? हम परमेश्वर के लोग हैं। मसीही होने के नाते हम एक परिवार के अर्थात परमेश्वर के परिवार के भाग हैं। और वह चाहता है कि हम अपने परिवार के सदस्यों को प्रेम करें और उन्हें सुरक्षा दें बजाय कि उनका न्याय करें।
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परमेश्वर मैंने अक्सर अपनी तुलना दूसरों के साथ की है और उन्हें दोषी ठहराया है। मैं जानती हूँ कि यह गलत है। मसीह यीशु के शक्तिशाली नाम में प्रत्येक बुरा और दोषी ठहरानेवाले विचारों को पराजित करने में जो शैतान मेरी ओर फेंकता है, मेरी सहायता करने की प्रार्थना करती हूँ। मैं जानती हूँ कि आपकी सहायता और आपके वचन के द्वारा मैं जीत सकती हूँ। आमीन।।