
आत्मिक जन सब कुछ जाँचता है, (वह जाँचता, खोजता, पूछताछ करता, प्रश्न करता, और सब बातों को परख लेता है) परन्तु वह आप किसी से जाँचा नहीं जाता। -1 कुरिन्थियों 2:15
जितना अधिक हम अपनी समस्याओं की कल्पना करने का प्रयास करेंगे हम उतना ही अधिक कुण्ठित और भ्रमित होंगे। कारण यह है कि क्योंकि हम परमेश्वर के अनुग्रह के बिना कार्य करने का प्रयास कर रहे हैं।
मेरी सेवकाई में अधिकांश प्रार्थना निवेदन जो मैं प्राप्त करती हूँ वह अगुवाई के लिए है। बहुत से लोग ऐसे होते हैं जिन्हें नहीं मालूम कि क्या करना है। वे परिस्थितियों के द्वारा कुण्ठित और भ्रमित हैं जिनका वे प्रतिदिन के जीवन में सामना करते हैं और उन्हें नहीं मालूम कि सहायता कहाँ ढूँढ़े।
यदि मेरी कोई समस्या है तो मुझे उसके विषय में व्यर्थ कल्पना करने की ज़रूरत नहीं है मुझे परखने की ज़रूरत है। मुझे प्रभु से सुनने की ज़रूरत है, अपनी स्थिति पर मुझे परमेश्वर के वचन की आवश्यकता है। मुझे ज़रूरत है कि वह मुझे दिखाए कि क्या करना है। परखना जीवन की किसी भी स्थिति के लिए परमेश्वर की बुद्धि मात्र है। यह एक ‘‘आत्मिक जानना है,’’ कि किस प्रकार से व्यवहार किया जाए।
एक बार जब मैं प्रार्थना कर रही थी और परमेश्वर से परख माँग रही थी; प्रभु ने मुझ से बात की और कहा, ‘‘जॉयस, तुम तब तक परख प्राप्त नहीं करोगी जब तक तुम कारण खोजना छोड़ नहीं देती।’’ अब ध्यान दें कि प्रभु ने मुझ से ये नहीं कहा कि ‘‘जब तक मैं तुम्हें कारण खोजने से मुक्त न कर दूँ,’’ उसने कहा ‘‘जब तक तुम कारण खोजना बंद न कर दो।’’
यदि आप जीवन में सब कुछ का कारण खोजने का प्रयास करते हैं आपको यह समझना चाहिए कि यह एक स्वभाव मात्र है। एक बुरा स्वभाव, एक ऐसा स्वभाव जिसे आपको तोड़ना है। आपका मन भी उस प्रकार का होगा जैसा मेरा था। मैं कारण खोजने के प्रति अत्यधिक आदि थी। अपने मन को इस्तेमाल करने में कुछ भी गलत नहीं है…परमेश्वर ने हमें मज़बूत मन से आशीषित किया है कि हम बड़ी बातों को करें। परन्तु जैसे ही आप कुण्ठित और भ्रमित महसूस करने लगते हैं, जैसे ही आप अपने आन्तरिक शांति को खोना महसूस करते हैं आपको प्रेम से कहने की ज़रूरत है, ‘‘ओह्-मैं बहुत दूर चला गया हूँ।’’ आपको अपने प्रयास छोड़ने देने चाहिए और स्वयं को पूर्ण रूप से प्रभु के ऊपर डाल देना चाहिए और अपनी परिस्थितियों को पूरी रीति से उसके हाथों में दे देना चाहिए।