परन्तु परमेश्वर से सब कुछ हो सकता है। -मत्ती 19:26
जब परमेश्वर अब्राहम के पास आया और उससे कहा कि वह उसे आशीष देने जा रहा है। अब्राहम ने परमेश्वर से कहा, “यह अच्छी बात है परन्तु मुझे जो चाहिए वह एक पुत्र है।” परमेश्वर ने कहा, “मैं तुम्हें वह देने जा रहा हूँ, जिसकी तुम माँग कर रहे हो।” परन्तु उसने अब्राहम को तुरन्त वही नहीं दिया। वचन कहता है, “जब इसहाक पैदा हुआ तब अब्राहम सौ साल का था।” (उत्पत्ति 21:5) वास्तव में परमेश्वर ने जब अब्राहम को प्रतिज्ञा दी कि उसे एक संतान मिलेगी उसे उसके बीस वर्ष बाद एक पुत्र की प्राप्ति हुई। वास्तव में जब परमेश्वर उसे पुत्र की प्रतिज्ञा दी तभी वह बुढ़ा हो चुका था।
उस समय तक जब अब्राहम बच्चे का पिता बना उसकी पत्नी भी जीवन के परिवर्तन से गुज़र चुकी थी। उसकी कोख बंद हो चुकी थी, इसलिए अब्राहम और सारा को न केवल एक प्रार्थना की ज़रूरत थी, उन्हें एक आश्चर्यकर्म भी ज़रूरत थी।
क्या यह रोचक नहीं है कि कभी कभी जब आप परमेश्वर से कुछ माँग करते हैं तो वह उसे लम्बा खींच देता है और केवल एक मात्र बात जो सम्वतः उत्पादित हो सकती है जो आपने पूछा है वह एक आश्चर्यकर्म है? परमेश्वर ऐसा क्यों करता है? “क्योंकि वह उनकी ओर से सामर्थी दिखाना पसंद करता है जिनके हृदय उसके प्रति निर्दोश हों।” (2 इतिहास 16:9)
जब मार्था और मरियम ने यीशु को बुलावा भेजा कि वह आए और उसके भाई लाजरस की सेवा करे जो बहुत अधिक बीमार था। तब यीशु और दो दिन क्यों रूक गया जब तक लाजर मर नहीं गया और दफ़ना नहीं दिया गया। उससे पहले कि वह वहाँ जाए और लाज़र को जिला उठाया? यह इसलिए था क्योंकि यीशु पहले से जानता था कि वह लाज़रस के लिए ऐसा करने जा रहा है।
यदि कुछ मरा हुआ है-एक स्वप्न, एक इच्छा, एक चाह, एक ज़रूरत-परमेश्वर के लिए इसका कोई मतलब नहीं है कि वह कैसा मरा हुआ है। परमेश्वर उसे अब भी अपने समय में जीवन में ला सकता हैं क्योंकि हमारा परमेश्वर एक अद्भुत परमेश्वर है, उसके लिए कुछ भी कठिन नहीं है। इसलिए वह कभी भी जल्दबाज़ी में नहीं है और ऐसा दिखता है कि वह अक्सर तब तक इंतजार करता है जब तक कुछ भी काम नहीं कर सके, परन्तु केवल एक आश्चर्यकर्म।