
तौ भी (इन सबके बावजूद) अधिकारियों में से बहुतों ने (अधिकारियों और कुलीनों) उस पर विश्वास किया, परन्तु फरीसियों के कारण प्रगट में नहीं मानते थे, कहीं ऐसा न हो कि (यदि वे उसका अंगीकार करते) वे आराधनालय में से निकाले जाएँ। -यूहन्ना 12:42
बाइबल यूहन्ना 12:42-43 में हमें सिखाती है कि बहुत से मुख्य लोग यीशु में विश्वास किए परन्तु इस भय से उन्होंने इस बात का अंगीकार नहीं किया कि यदि वे ऐसा करते वे आराधनालय से निकाल दिए जाते। “क्योंकि मनुष्यों की ओर से प्रशंसा उनको परमेश्वर की ओर से प्रशंसा की अपेक्षा अधिक प्रिय लगती है।” (यूहन्ना 12:43) इस उदाहरण में हम देखते हैं कि कुछ लोग यीशु मसीह के साथ संबंध बनाने से बाधित हो गए क्योंकि वे लोगों की सहमति चाहते थे। यद्यपि वे प्रभु से संबंध चाहते थे वे अधिक मनुष्यों की सहमति चाहते थे। यह दुःखदायी है परन्तु यह हर समय ऐसा होता है।
यूहन्ना 12 में जिन लोगों का वर्णन किया गया है वे जानते थे कि यीशु वास्तविक है। वे उस में विश्वास करते थे, परन्तु लोगों की सहमति पाने का प्रेम उन्हें अनुमति नहीं देता कि वे उसके साथ एक सच्चा संबंध बनाते। मुझे आश्चर्य होता है कि उनका जीवन किस अनजाम तक पहुँचा। उन्होंने क्या खोया क्योंकि उन्होंने लोगों से हाँ कहा, परन्तु परमेश्वर से न कहा? मुझे आश्चर्य होता है कि उनमें से कितने लोगों का वर्णन बाइबल में फिर कभी नहीं किया गया। मुझे आश्चर्य होता है कि वे मजबूरी में नहीं पड़ते और कभी भी अपनी मंजिल तक नहीं पहुँचे क्योंकि उन्होंने परमेश्वर से सहमति से लोगों की सहमति अधिक चाही। उनमें से कितने लोगों ने अपना अनादर करते हुए अपना जीवन व्यतीत किया क्योंकि वे लोगों को प्रसन्न करनेवाले थे? परमेश्वर का अनुकरण कीजिए लोगों का नहीं!