
परन्तु तुम्हारा वह अभिषेक (वह पवित्र नियुक्ति) जो उसकी ओर से किया गया, तुममें बना (स्थाई रूप से) रहता है; और तुम्हे इसका प्रयोजन नहीं कि कोई तुम्हे सिखाए, वरन् जैसे वह अभिषेक जो उसकी ओर से किया गया तुम्हे सब बातें सिखाता है और यह सच्चा है और झूठा नहीं; और जैसा उसने तुम्हे सिखाया है वैसे ही तुम उसमें बने रहते हो। -1 यूहन्ना 2:27
कभी कभी परमेश्वर हमसे जो कहता है उससे अधिक लोग हमसे जो कहते हैं उसे महत्व देते हैं। यदि हम परिश्रम के साथ प्रार्थना करते हैं, परमेश्वर से सुनते हैं, परन्तु तब लोगों से पूछना प्रारंभ करते हैं कि वे क्या सोचते हैं, तब परमेश्वर के वचन के उपर लोगों के विचार को अधिक महत्व देते हैं। यह स्वभाव हमें निरंतर परमेश्वर के साथ उससे सुनने का संबंध बनाने से वंचित करेगा।
उपरोक्त पद स्पष्ट करता है कि हम बारम्बार लोगों से आश्वासन पाए बिना निर्देश पाने के लिए परमेश्वर पर भरोसा कर सकते हैं। यह नहीं कहा जा रहा है कि हमें वचन सिखाने के लिए किसी की ज़रूरत नहीं है ना ही यह कि परमेश्वर सिखाने के लिए मसीह की देह में किसी को नियुक्त नहीं करता। परन्तु यह कहता है कि यदि हम मसीह में हैं तो हमें अगुवाई देने और दिशा दिखाने के लिए हमारे भीतर एक अभिषेक है। हमें कुछ अवसरों पर लोगों के विचार पूछने चाहिए परन्तु हमें अपने जीवन में लिए जाने वाले निर्देशों के विषय में पूछने के लिए निरंतर लोगों के पास जाने की आवश्यकता नहीं है।