परमेश्वर की उच्च स्तुति

भक्‍त लोग महिमा के कारण प्रफुल्‍लित हों; और अपने बिछौनों पर भी पड़े पड़े जयजयकार करें। उनके कण्ठ से परमेश्‍वर की प्रशंसा हो, और उनके हाथों में दोधारी तलवारें रहें। भजन संहिता 149:5–6

हमें रोज सुबह उठते ही परमेश्वर को धन्यवाद देने और उसकी स्तुति करने की आदत बना लेनी चाहिए। जबकि हम बिस्तर पर ही लेटे हुए होते हैं, आइए धन्यवाद दें और अपने मन को पवित्रशास्त्र से भर दें।

किसी भी अन्य युद्ध योजना की तुलना में स्तुति शैतान को जल्द ही हरा देती है। स्तुति एक अदृश्य वस्त्र है जिसे हम पहन लेते हैं और यह हमें पराजय से और हमारे मनों में की नकारात्मकता से हमारी रक्षा करता है। लेकिन यह सच्ची, दिल से की हुई स्तुति होनी चाहिए, न कि केवल होंठों की सेवा या यह देखने का एक तरीका कि क्या यह काम करता है। हम परमेश्वर के वचन में के वादों और उसकी भलाई के लिए उसकी स्तुति करते हैं।

आराधना एक युद्ध की स्थिति है! जब हम परमेश्वर की आराधना वह जो कुछ है और उसके गुणों के लिए, उसके सामर्थ्य और शक्ति के लिए करते हैं, तब हम परमेश्वर के करीब आते हैं और शत्रु हार जाता है।

हम कभी भी बहुत आभारी नहीं हो सकते! दिन भर परमेश्वर का धन्यवाद करें और उन बहुत से कामों को याद करें जो उसने आपके लिए किए हैं।


परमेश्वर कभी युद्ध नहीं हारता। उसके पास एक निश्चित युद्ध योजना है, और जब हम उसका अनुसरण करेंगे, तब हम हमेशा विजयी होंगे।

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