परमेश्वर की स्वीकृति को चुनना

परमेश्वर की स्वीकृति को चुनना

तब पतरस और अन्य पे्ररितों ने उत्तर दिया, “मनुष्य की आज्ञा से बढ़कर  परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना ही हमारा कर्तव्य है।” -प्रेरितों 5:29

हममें से कोई भी जो जीवन में बहुत कुछ करना चाहते हैं उन्हें इस सत्य को स्वीकार करना होगा कि ऐसे समय भी होंगे जब हम हर किसी से स्वीकृति नहीं पाएँगे। प्रसिद्ध होने की ज़रूरत हमारी मंजिल को चुरा लेगी। मैं बहुत अधिक भिन्न लोगों के साथ व्यवहार करती और सेवा करती हूँ, मानों इस रीति से यह किसी प्रकार संभव नहीं है कि मैं हर समय उनमें से हर एक को प्रसन्न रख सकूँ। जॉयस मेयर मिनिस्ट्रीज़ सेवकाई में हमारे पाँच सौ से अधिक कर्मचारी हैं। हम अधिकांशतः कभी भी ऐसा एक निर्णय नहीं लेते हैं जो उन सब पर लागू हो सके।

बाइबल कहती है कि यीशु ने अपने आपको “दास के स्वरूप” में कर दिया (फिलिप्पियों 2:7 देखिए) यह एक उल्लेखनीय कथन है। बहुत से लोगों के द्वारा उसके विषय में अच्छा नहीं सोचा जाता था परन्तु उसके स्वर्गीय पिता ने उसे सम्मति दी और जो कुछ वह कर रहा था उसे स्वीकृति दी और यह बात थी जो उसके लिए अहमत रखती थी। जब तक मैं और आप परमेश्वर की स्वीकृति रखते हैं तो हमारे पास वह है जिसकी अधिक हमें ज़रूरत है। फिलिप्पियों के बाद में प्रेरित पौलुस कहता है, कि यदि वह लोगों के बीच में या लोगों के साथ प्रसिद्ध होने का प्रयास किया होता तो वह प्रभु यीशु मसीह का सेवक नहीं होता। वह कहता है कि असन्तुलित रीति से ज़रूरतमन्द लोगों की स्वीकृति  हमारी मंज़िल को चुरा सकती है।

हम हमेशा एक ही समय पर परमेश्वर को और मनुष्य दोनों को प्रसन्न करनेवाले नहीं हो सकते हैं।

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