परन्तु जब तू प्रार्थना करे, तो अपनी कोठरी में जा; और द्वार बन्द कर के अपने पिता से जो गुप्त में है प्रार्थना कर; और तब तेरा पिता जो गुप्त में देखता है, तुझे प्रतिफल देगा। (मत्ती 6:6)
परमेश्वर के साथ मेरे कई सालों के अनुभव में मैंने यह पहचाना है कि हम जो बातें गुप्त रखी जानी चाहिए उन्हें गुप्त रखने में इतने अच्छे नहीं है। आज के लिए आयत संकेत करती है कि जो हम प्रार्थना करते है वो हमारे और परमेश्वर के बीच में होती है और यह अन्य के लिए प्रदर्शन करना नहीं है। हम परमेश्वर से सुनना चाहते है, फिर भी जिस पल ही हम महसूस करते कि वह हमें कुछ बताता है, तो जो उसने कहा होता वो दूसरों को बताने का हम इंतजार नहीं कर पाते। संभावी तौर पर वो कई बार सही होता है, पर यहां पर वो समय भी होते है जब हमारे और परमेश्वर के बीच बातों को गुप्त रखा जाना होता है।
जब युसूफ ने एक स्वप्न देखा कि उसके पिता और उसके भाई किसी दिन उसके आगे सिर झुकाएंगे, तब संभावी तौर पर यह बचकाना मूर्खता थी जिसने उसको इसके बारे में उन्हें बताने के लिए उकसाया था। संभावी तौर पर यह वही मूर्खता थी जिसे परमेश्वर को युसूफ के अन्दर से बाहर निकालने के लिए काम करना पड़ा था ताकि जो जिम्मेदारी उसके मन में थी वो उसे सौंप सकें। बहुत बार भेदों को गुप्त रखने की हमारी इच्छुकता अपरिपक्वता का एक चिन्ह होता है। मैं सोचती हूं कि हम हमारे जीवनों में ज्यादा परमेश्वर के ईनामों को प्रकट होता देखेंगे, जैसा कि आज का पद कहता है, अगर हम इसके बीच फर्क को समझना सीख लेते है कि क्या बताना और क्या गुप्त ही रखना है।
आज आप के लिए परमेश्वर का वचनः जब आपकी भावनाएं उत्तेजित होती तो आप क्या बोलते उसके प्रति सावधान रहें।