
मैं तुम्हें शांति दिए जाता हूँ, अपनी शांति तुम्हें देता हूँ; जैसे संसार देता है, मैं तुम्हें नहीं देताः तुम्हारा मन व्याकुल न हो और न डरे। (अपने आप को भय में या बिना भरोसा के नहीं होने दो) -यूहन्ना 14:27
परमेश्वर के विश्राम में प्रवेश करने के विषय में मैं यह कहना चाहती हूँ, “कि परमेश्वर के विश्राम” के समान और दूसरी कोई भी बात नहीं है। इसका वर्णन करने के लिए मुझे एक कहानी बताने दीजिए जिसे मैंने एक बार सुना था जिसमें दो कलाकार शामिल थे जो इनसे अपनी कल्पना के अनुसार शांति की तस्वीर बनाने के लिए कहा गया। एक ने एक शांत स्थिर झील को चित्रित किया जिसकी पृष्ठभूमि में पहाडि़याँ थी। दूसरा एक कलकल करती, पर्वतों पर से गिरते पानी के प्रताप को चित्रित किया जिसमें एक पेड़ को बनाया जो पानी की ओर छिपा हुआ था और जिसकी शाखाओं में एक के बाद एक चिडि़या अपने घोंसले में आराम कर रही थी।
इनमें से कौन सा सच में शांति को चित्रित करता है? दूसरा चित्रित करता है, क्योंकि शांति के समान और कोई बात नहीं है जो बिना विरोध के हो। पहला चित्र गतिहीनता को चित्रित करता है। यह चित्र एक शांतिपूर्ण दृश्य को प्रतिबिंब करता है। एक व्यक्ति स्वास्थ्य लाभ के लिए वहाँ जाने हेतु प्रेरित हो सकता है। वह एक अच्छा चित्र हो सकता है परन्तु “यह परमेश्वर की शांति का वर्णन नहीं करता है।” यीशु ने कहा, “मैं तुम्हें शांति दिए जाता हूँ, अपनी शांति तुम्हें देता हूँ; जैसे संसार देता है, मैं तुम्हें नहीं देता: तुम्हारा मन व्याकुल न हो और न डरे (यूहन्ना 14:27)।” उसकी शांति एक आत्मिक शांति है और उसका विश्राम आँधी के मध्य में भी कार्य करता है न कि उसकी उपस्थिती में।
यीशु सारे विरोधियों को हमारे जीवन से दूर करने नहीं आया; परन्तु हमें यह देने के लिए आया कि जीवन की आँधियों के प्रति किस प्रकार व्यवहार करना है। हमें उसके जूए को अपने ऊपर ले लेना है और उससे सीखना है (मत्ती 11:29 देखिए)। इसका तात्पर्य है कि हमें उसके रास्तों को सीखना है कि उसी रीति से हम भी जीवन के प्रति नज़रिया रखें। यीशु चिंता नहीं करता और हमें भी चिंता नहीं करनी है।