सैनाओं का यहोवा हमारे संग है; याकूब का परमेश्वर हमारा ऊँचा गढ़ है। -भजनसंहिता 46:11
असुरक्षा की एक महामारी आज हमारे समाज में बहुत से लोगों के जीवनों से आनन्द को चुरा रही है और उनके संबंधों में बड़ी समस्याओं का कारण हो रही है। मैं जीवनों पर असुरक्षा के प्रभाव को जानती हूँ क्योंकि मैंने स्वयं इसका अनुभव किया है। मैं जानती हूँ कि यह एक व्यक्ति के साथ क्या करती है।
वह जो असुरक्षित होते अक्सर तिरस्कार और कमजोर आत्म-सम्मान की अपनी भावना पर जय पाने के प्रयास में अन्यों की स्वीकृति को खोजते है। वह स्वीकृति के आदी होते है।
जब हम असुरक्षा के साथ संघर्ष करते, केवल एक बात हमें आजाद करेगी, और यह परमेश्वर की सच्चाई है। सच्चाई यह है कि हमें जो परमेश्वर मुफ्त में देता है उसको मनुष्य से प्राप्त करने का संघर्ष करने की जरूरत नहीं हैः प्रेम, स्वीकृति, मंजूरी, सुरक्षा, योग्यता और मूल्य।
वह हमारा शरणस्थान, हमारा ऊँचा गढ़, हमारी ताकत, मुश्किल के समयों में हमारा गढ़ और छिपने का स्थान है (देखें भजन संहिता 9:9; 31:4; 32:7; 37:39; 46:11)। हमारा मूल्य, योग्यता, स्वीकृति और मंजूरी उससे आती है। जब तक वह हमारे पास है, हमारे पास संसार की सबसे मूल्यवान बातें है।
जब आप उसकी तरफ देखते आप आत्म-विश्वासी, परिपक्क व्यक्ति जो परमेश्वर ने होने के लिए आपको उत्पन्न किया वह बनते आजादी के नए स्तरों में उठेंगे।
आरंभक प्रार्थना
प्रभु, मैं सुरक्षा के लिए आपकी तरफ देखती हूँ। मैं सत्य पर केन्द्रित होती हूँ – आप मेरा शरणस्थान और बल है। आप मुझे प्रेम और स्वीकृति देते है। केवल आप ही में, मैं पूरी तरह भरोसेमंद हूँ।