पुनः नियुक्ति पाएँ

पुनः नियुक्ति पाएँ

हम चारों (हर प्रकार से कष्ट सहते) ओर क्लेश तो भोगते (दबाए) हैं, पर संकट में नहीं पड़ते; निरूपाय तो हैं, पर निराश नहीं होते; सताए तो जाते हैं, पर त्यागे (अकेले नहीं किए जाते) नहीं जाते; गिराए तो जाते हैं, पर नष्ट नहीं होते। -2 कुरिन्थियों 4:8-9

हम सब निराश होते हैं जब हमारी कोई योजना पराजित हो जाती है। एक उम्मीद जो पूरी नहीं होती है, एक लक्ष्य जो जिस पर पहुँचा नहीं गया; ऐसी बातें जब होती हैं तो कुछ विशेष समय के लिए हम निराश होते हैं। जिसका यदि सही रीति से उसके साथ व्यवहार नहीं किया गया तो वह हमें निराशा के गर्त में ढ़केल देती है।

इसलिए जब हमें सामन्जस्य बिठाने और अपनाने का निर्णय लेना है एक नई रीति का प्रयोग करना है तो हमारी भावनाओं से दूर आगे बढ़ते जाना है। यही समय है जब हमे स्मरण करना है कि हममें वह श्रेष्ठ रहता है इसलिए चाहे हमें निराश करने के लिए कुछ भी हो और वह हमारे स्वप्नों और लक्ष्यों को वापसी बनाने से कितना भी अधिक काम करे तो हम केवल अपनी भावनाओं के कारण हार मानने या छोड़ देने नहीं जा रहे हैं। यही समय है जब हमें अवश्य स्मरण करना है ऐसे ही समय में जब परमेश्वर ने मुझ से क्या कहाः “जब तुम निराश हो तो जो हमेशा पुनः नियुक्त होने का एक निर्णय ले सकते हो!”

निराश होना हमेशा आपको कुंठित होने की ओर ले जाता है, यह “नीचे गिराने” से भी बढ़कर है। जिन चीज़ों से हम प्यार करते हैं दूसरों के द्वारा उसका नाश किया जाना देखना कितना अधिक हतोत्साहित करनेवाला, और निराश करनेवाली बात है, जो अनदेखी या पराजय से अधिक बुरी है।

चाहे यह कैसे भी हो, कोई भी इसका उत्तरदायी हो यह कठिन है जब प्रत्येक बात जिनको हमने गिना है वह हमारे चारों तरफ़ गिर जाती है। यही है जब हममें से वे जिनके भीतर पवित्र आत्मा की रचनात्मक शक्ति है, एक नया दर्शन, एक नई दिशा, और एक नया लक्ष्य जो हमें निराशा, हताष एवं विनाश पर नियंत्रण करने के लिए सहायता करता हैं।

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