(यीशु ने कहा) – यदि पेड़ को अच्छा कहो, तो उसके फल को भी अच्छा कहो, या पेड़ को निकम्मा कहो तो उसके फल को भी निकम्मा कहो; क्योंकि पेड़ अपने फल ही से पहचाना जाता है। हे साँप के बच्चों, तुम बुरे होकर कैसे अच्छी बातें कह सकते हो? क्योंकि जो मन में भरा है वही मुँह पर आता है। – मत्ती 12:33-34
एक महिला जिसका नाम डोरथी था वह कलीसिया के सभी सदस्यों को जानती थी। उसका नाम कानाफूसी करनेवालों में शुमार थी।
एक मित्र ने एक बार कहा कि उसके बारे में एक बात सच है कि ‘‘वह पूर्वाग्रह से ग्रस्त नहीं है वह सभी के बारे में बातें करती है’’, और वह हंस पड़ा। और आगे कहा ‘‘शायद वह स्वर्ग जाएगी लेकिन परमेश्वर को उसका जीभ काटनी पड़ेगी।’’ उसने अपने विचार जोड़े।
एक दिन जब मैं सामने के द्वार के पास खड़ी थी तो मैंने डोरथी को बहुत से लोगों से एक डीकन के बारे में बात करते सुना,
‘‘पर मैं उसका न्याय कैसे कर सकती हूँ?’’ उसने कहा। उसके मुँह से यह बात निकली और वह कई अन्य लोगों के बारें में भी बात करने लगी।
मैंने उसकी बातें ध्यान से सुनी और समझा भी। उसके हृदय में जो कुछ पहले से था उसमें से वह बात कर रही थी। यह स्पष्ट था परन्तु मैंने कुछ और ही समझा। अपने बारे में वह बहुत ही अलोचनात्मक थी, अपने प्रति बहुत अधिक धृणा रखती थी, इसलिए वह दुसरों के बारे में अच्छा कैसे बोल सकती थी?
बहुत बार लोग प्रतिज्ञा करते हैं कि वे दुसरों के बारे में अच्छी बातें करेंगें और गप्पबाजी नहीं करेंगें। वे प्रयास भी करते हैं लेकिन फिर भी कुछ नहीं बदलता है। कारण यह है कि वे अपने विचारों को बदले बिना अपने शब्दों को बदलने का प्रयास करते हैं। वे एक गलत छोर से प्रारंभ करते हैं। उन्हे करना तो यह चाहिए कि वे अपने भीतर देखें और पूछें कि ‘‘मेरे भीतर क्या चल रहा है?’’
‘‘जो मन में भरा है वही मुँह पर आता है।’’ यीशुने कहा। जब मैंने इन शब्दों पर विचार किया तब मैं मेरा मन में डोरथी के लिए बहुत अधिक दया भर आई। उसने शैतान को अनुमति दी थी कि वह उसके मन को आलोचनात्मक और कठोर विचारों से भरे। वह कम ही सही पर दूसरों के समान अपने विषय में भी अलोचनात्मक थी। जब वह बात करती थी तब उसके मुँह से बुरे शब्द बाहर आते थे।
यीशु ने कहा कि पेड़ अपने फल से पहचाना जाता है। हमारे जीवन के विषय में भी यह सच है। सब कुछ एक विचार से प्रारंभ होता है। यदि हम नकारात्मक और अकृपालु विचारों को अपने मन में भरने देंगें तो वे फल लाएँगें। यदि हम बुरे विचारों पर अपना मन लगाएँगे तो वह बुरे फल लगाएँगे।
जब हम लोगों पर ध्यान देते हैं तो उनके जीवन के फलों को देखना आसान होता है। वे या तो अच्छे फल दिखाते हैं या फिर बुरे। यह बहुत ही साधारण सी बात है। लेकिन फल उनके भीतर चल रही बातों का परिणाम होते हैं। हम किसी की बातचीत सुनकर ऐसे व्यक्ति के बारे में बहुत कुछ अनुमान लगा सकते हैं। अन्य लोगो के विषय में हमारे शब्द या कार्य जितना अधिक प्रेममय होते हैं उतना अधिक उनके विषय में हमारे विचार भी प्रेममय होंगें। यदि मैं विचार करता हूँ कि परमेश्वर सच में मुझसे प्रेम करता है और प्रतिदिन उसकी संगति का आनंद उठाता हूँ, तो मैं अपने मन में अच्छे विचार बो रहा हूँ। जितने अधिक अच्छे बीज़ में वो रहा, उतने ही अच्छे फल उत्पन्न करूँगा। जितना अधिक मैं दयालु और प्रममय विचारों को सोचता हूँ, उतना अधिक मैं अन्य लोगों को भी दयालु और प्रेममय पाता हूँ।
“जो मन में भरा होता है वही मुँह पर आता है’’। दयालु, दोषी ठहराने वाले शब्द अचानक ही नहीं आते हैं। वे हमारे मुँह में इसलिए आते हैं क्योंकि हम उन्हें मन में पोषित करते हैं। जितना अधिक हम स्वयं को आत्मा के सकारात्मक और प्रेमी विचारों के लिए खोलते हैं, जितना अधिक हम प्रार्थना करते हैं, परमेश्वर के वचन को पढ़ते हैं, उतना ही भला फल हम अपने भीतर उत्पन्न करते हैं और यह अच्छा फल दूसरों के प्रति हमारे व्यवहार से दिखाई पड़ता हैं।
प्रेमी, क्षमाशील परमेश्वर मुझे लोगों से कठोर बातें बोलने और अपने मन में गलत और कठोर बातें पनपने देने के लिए क्षमा कीजिए। मैं जानती हूँ कि मैं स्वयं को अधिक प्रेमी और दयालु नहीं बना सकती हूँ पर आप मेरी सहायता करें। यीशु मसीह के नाम में। आमीन्।