इसी लिए जिस दिन से यह सुना है, हम भी तुम्हारे लिए यह प्रार्थना और विनती करना नहीं छोड़ते कि तुम सारे आत्मिक ज्ञान और समझ सहित परमेश्वर की इच्छा की पहिचान में परिपूर्ण हो जाओ (जियो और व्यवहार रखो), ताकि तुम्हारा चाल-चलन प्रभु के योग्य हो, और वह सब प्रकार से प्रसन्न हो, और तुम में हर प्रकार के भले कामों का फल लगे, और तुम परमेश्वर के पहिचान में बढ़ते जाओ। -कुलुस्सियों 1:9-10
लोग जो अगुवे बनना चाहते हैं उनके पास दूसरों के साथ व्यवहार करने का चरित्र होना चाहिए। उन्हें अपनी बात पर बने रहना चाहिए, उन्हें सत्य निष्ठावाले लोग होना चाहिए। मत्ती 21:18-19 में हम यीशु मसीह के जीवन में घटित एक घटना के विषय में पढ़ते हैं।
भोर को जब वह नगर को लौट रहा था तो उसे भूख लगी। सड़क के किनारे एक अंजीर का पेड़ देखकर वह उसके पास गया, और पत्तों को छोड़ उसमें कुछ न पाकर (यह देखकर कि अंजीर के पेड़ में पत्तियाँ और फल एक साथ आते हैं) उससे कहा, अब से तुझ में फिर कभी फल न लगें! और अंजीर का पेड़ तुरन्त सूख गया।
मैं इस अंजीर के पेड़ के लिए खेद महसूस किया करती थी। मैं इस कहानी को बिल्कुल नहीं समझती थी, मैंने सोचा यह अंजीर के पेड़ की गलती नहीं थी कि उसमें पत्तीयाँ ही थी उसमें अंजीर नहीं थे। यीशु ने क्यों उसे श्राप दिया? कुछ समय पश्चात् परमेश्वर ने मुझे कारण दिखाया। ऐम्लीफाईड बाइबल के अंग्रेजी अनुवाद के टिप्पणी के अनुसार एक अंजीर के पेड़ पर उसी समय अंजीर लगते हैं जब उसमें पत्तियाँ आती हैं। इसलिए यीशु ने जब कुछ दूरी से अंजीर के पेड़ को पत्तियों से भरा देखा वह उसके पास फल पाने की आशा से गया। जब उसमें कुछ भी नहीं था तब उसने उसे श्राप दिया क्यों? क्योंकि यह व्यर्थ था। उसमें पत्तियाँ थी परन्तु फल नहीं थे।
मसीह के देह में हमें बहुत सतर्क होना चाहिए कि हमें केवल पत्तीयों भरे और बिना फल के नहीं होना चाहिए। हम अपनी कार पर एक स्टिकर लगाकर या अपने कपड़ों पर यीशु का बैज लगाकर या कन्धे पर मसीही गीतों का रिकॉर्ड बजाते हुए या एक बहुत बड़ी बाइबल और टेप रिकॉर्ड को गले में बाँधकर संसार को जीतने नहीं जा रहे हैं। हमें अवश्य फल लाना है क्योंकि यीशु ने कहा, हम अपने फल के द्वारा पहिचाने जाएँगे।