
परन्तु जब हम सब के उघाड़े चेहरे से प्रभु का प्रताप इस प्रकार प्रगट होता है, जिस प्रकार दर्पण में, तो प्रभु के द्वारा जो आत्मा है, हम उसी तेजस्वी रूप में अंश अंश करके बदलते जाते हैं। —2 कुरिन्थियों 3:18
मैं बढ़ना चाहती हूं और बदलाव देखना चाहती हूं, और मुझे यकीन है कि आप भी ऐसा ही करेंगे। मैं अपने व्यवहार में बदलाव देखना चाहती हूं। मैं नियमित प्रगति देखना चाहती हूं। उदाहरण के लिए, मुझे अधिक स्थिरता चाहिए; मैं प्रेम और आत्मा के अन्य सभी फल में बड़े पैमाने पर चलना चाहती हूं। मैं दूसरों के प्रति दयालु और अच्छा बनना चाहती हूं, भले ही मुझे अच्छा न लग रहा हो या विशेष रूप से वह अच्छा दिन न रहा हो। यहां तक कि जब चीजें मेरे विरुद्ध हो रही हों और चीजें उस तरह से कार्य न कर रही हों जैसा मैं चाहती हूं, तब भी मैं यीशु मसीह के चरित्र को प्रदर्शित करना चाहती हूं।
हमारे भीतर के पवित्र आत्मा की सामर्थ्य के द्वारा, हम आनंदित, अच्छे और दयालु होने में सक्षम होते हैं, तब भी जब चीजें हमारे अनुकूल नहीं होती हैं। हम तब भी शांत रह पाते हैं जब हमारे आस-पास सब कुछ अस्त-व्यस्त हो जाता है, जब सब कुछ हमारे विरुद्ध षडयंत्र करने जैसा प्रतीत होता है ताकि हमारा धैर्य टूटे और हम क्रोधित और परेशान हो जाएं।
मेरे लिए वह कुंजी थी अंतत: यह जानना कि परमेश्वर मुझे उसके अनुग्रह से बदलता है, न कि स्वयं को बदलने के मेरे संघर्षों के द्वारा। मैंने कई वर्षों तक अपने आप से कुश्ती लड़ते हुए सहन किया जब तक मैंने परमेश्वर के सामर्थ्य को न जाना जो मुझे भीतर से बदलता है – थोड़ा-थोड़ा कर के।
इसी प्रकार परमेश्वर हमें बदलता है: वह हमें कुछ दर्शाता है और फिर तब तक प्रतीक्षा करता है जब तक कि हम उस बात के लिए उस पर भरोसा करने का निर्णय नहीं लेते, इससे पहले कि वह हमारे जीवन के उस क्षेत्र में उसके चरित्र को कार्यरत करे।