भावनात्मक परिक्षाओं में परमेश्वर पर भरोसा

भावनात्मक परिक्षाओं में परमेश्वर पर भरोसा

…हे पिता यदि तू चाहे तो इस कटोरे को मेरे पास से हटा ले, तौभी मेरी नहीं परन्तु तेरी ही इच्छा पूरी हो। – लूका 22:42

एक परिपक्क मसीही में वृद्धि करना जो पवित्र आत्मा का अनुसरण करता है कुछ वो नहीं जो एक ही रात में हो जाता है – यह एक सीखने की प्रक्रिया है जिसके लिए समय लगता है। थोड़ा थोड़ा करके, एक के बाद एक अनुभव के बाद, परमेश्वर वृद्धि करने के लिए हमें अवसर देता, हमारी भावनाओं की परीक्षा लेता और परखता है।

परमेश्वर हमें मुश्किल परिस्थितियों में से निकलने की अनुमति देता है जो हमारी भावनाओं को प्रेरित करता है। इस ढंग में, आप और मैं स्वयं को देखने के योग्य होते है कि भावनात्मक स्तर पर हम कितने अस्थिर हो सकते और कितनी ज्यादा हमें उसकी सहायता की आवश्यकता है।

यीशु हमारे लिए इसका नमूना देता है। हमारे पापों के लिए मरने से एक रात पहले, वह भावनात्मक तौर पर बहुत व्याकुल था। वह मरना नहीं चाहता था, पर वह अपनी भावनाओं से आगे बढ़ा और परमेश्वर से प्रार्थना की, “मेरी इच्छा नहीं पर आपकी इच्छा पूरी हो।” हालात निश्चित तौर पर तुरन्त अच्छे नहीं हुए थे, पर अंत में यीशु संभावी तौर पर सबसे बड़ी परीक्षा में से विजयी होकर निकला था।

आप भी अपनी भावनातमक परिक्षाओं से पार हो सकते है। यीशु भावनाओं के द्वारा अगुवाई नहीं किया गया था, और आपको भी नहीं होना है। जब बातें भावनात्मक तौर पर आपको प्रभावित करती है, उस पल को लें और उसे परमेश्वर पर पूर्ण तौर पर भरोसा करने के एक स्थान में जाने का एक अवसर करके देखें।


आरंभक प्रार्थना

प्रभु, मैं जानती हूँ कि जब भावनात्मक परिक्षाएं मेरे मार्ग में आती है तो मैं आप में भरोसा कर सकती हूँ। यीशु को मेरी उदाहरण होते हुए, मैं कहती हूँ, “मेरी इच्छा नहीं पर आपकी इच्छा पूरी हो।” आप जानते है कि मेरे लिए उत्तम क्या है और मैं पूरी तरह से आप पर भरोसा करती हूँ।

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