क्योंकि प्रभु का मन किस ने जाना है, कि उसे सिखलाएँ? परन्तु हम में मसीह का मन है।- 1 कुरिन्थियों 2:16
यह पद बहुत से लोगों को अभिभूत करता है। यदि यह शब्द बाइबल के नहीं होते, तो वे उस पर विश्वास नहीं करते। बहुत से लोग अपने सिर को हिलाते हुए कहते हैं, यह कैसे हो सकता है?
पौलुस यह नहीं कहता है कि हम सिद्ध हैं, या कि हम कभी पराजित नहीं होंगे। परमेश्वर के पुत्र यीशु के अनुयायी होने के नाते वह हम से कह रहा था, कि हमें मसीह का मन दिया गया है। ताकि हम आत्मिक विचारों को सोचें, क्योंकि मसीह हम में जीवित है। जैसे हम पहले सोचते थे, अब वैसा नहीं सोचते हैं। जैसा उसने किया वैसा हम सोचना प्रारम्भ करते हैं।
इसे देखने का दूसरा तरीका, यहेजकेल को दी गई प्रतिज्ञा पर ध्यान करना है;“मैं तुम को नया मन दूँगा, और तुम्हारे भीतर नई आत्मा उत्पन्न करूँगा; और तुम्हारी देह में से पत्थर का हृदय निकालकर तुम को मांस का हृदय दूँगा। और मैं अपना आत्मा तुम्हारे भीतर देकर ऐसा करूँगा कि तुम मेरी विधियों पर चलोगे और मेरे नियमों को मानकर उनके अनुसार करोगे। तुम उस देश में बसोगे जो मैंने तुम्हारे पितरों को दिया था; और तुम मेरी प्रजा ठहरोगे, और मैं तुम्हारा परमेश्वर ठहरूँगा।” (यहेजकेल 36:26-28)।
परमेश्वर ने भविष्यवक्ता के द्वारा वह प्रतिज्ञा दिया, जब यहूदि बाबुल में बन्धुवाई में थे। वह यह दिखाना चाहता था कि उनकी वर्तमान स्थिति अन्त नहीं है। उन्होंने पाप किया था और हर संभव कल्पनीय तरीका से परमेश्वर को पराजित किया था, परन्तु वह उन्हें नहीं त्यागेगा बल्कि, वह उन्हें बदलेगा। वह उन्हें एक नया आत्मा देगा-अपना पवित्र आत्मा।
जब हमारे भीतर पवित्र आत्मा रहता और कार्य करता है, तो मसीह का मन सक्रिय है। मसीह का मन हमें इसलिये दिया गया है कि हम सही रीति से निर्देश प्राप्त करें। यदि हमारे पास उसका मन हो तो हम सकारात्मक विचारों को सोचेंगे। हम सोचेंगे कि हम कितने धन्य और परमेश्वर हमारे प्रति कितना भला रहा है। मैं जानती हूँ कि मैंने पहिले ही सकारात्मक होने के बारे में लिखा है। परन्तु मैं निश्चित नहीं हूँ कि सकारात्मक होने की शक्ति के बारे में कभी भी पर्याप्त कुछ कहा जा सकता है।
यीशु मसीह सकारात्मक था, उसके बारे में झूठ बोले जाने के बावजूद, अकेलापन, लोगों द्वारा न समझे जाने और अन्य बहुत सारे नकारात्मक बातें। उसे जब अपने चेलों की अधिक आवश्यकता थी, तो वह अकेला कर दिया गया, फिर भी वह सकारात्मक रहा। वह हमेशा लोगों को ऊँचा उठाने और उत्साहित करनेवाले शब्दों को सुनाने के मसीह का मन योग्य था। केवल उसकी उपस्थिति में होना ही हमें हमारे भय, नकारात्क विचारों, और निराश करनवाली आशाहीनता को हवा में उड़ा देगा।
हम में मसीह का मन सकारात्मक है। जब हम किसी बात को नकारात्मक रूप से विचार करने की परीक्षा में पड़ जाते हैं। तो हमें तुरन्त पहचान लेना चाहिये कि हम में मसीह का मन कार्य नहीं कर रहा है। परमेश्वर चाहता है कि हम उससे उठाये जाएँ। हमारी आत्मा का शत्रु ही है जो हमें नीचे गिराना और दबाना चाहता है। चिकित्सा कारण के अलावा मैं नहीं सोचती कि बिना नकारात्मक किसी भी व्यक्ति का निराश होना संभव है। हमारे पास नकारात्मक विचारों के बहुत सारे अवसर होते हैं। परन्तु यह हमारे भीतर काम कर रहा मसीह का मन नहीं होता है। हमें उन विचारों को विचार करने की आवश्यकता नहीं है, वे हमारे नहीं हैं।
प्रत्येक परिस्थिति स्वयं हमें चुनाव करने का अवसर प्रदान करती है। यह सच है, कि निश्चय ही हम, भले या बुरे का चुनाव कर सकते हैं।
बहुधा हम जो बात भूल जाते हैं, वह यह है कि हम बिना होशोहाभास के बुरे या गलत विचारों का चुनाव करते हैं। हम पुराने मन का अनुसरण करते हैं, मसीह के मन का नहीं। जैसे परमेश्वर ने यहेजकेल की भविष्यद्वाणी के द्वारा यहूदियों से प्रतिज्ञा किया। वह हमें एक नई आत्मा और नया हृदय देगा। परन्तु हमें अभी भी यह चुनाव करने की शक्ति है, कि हम किस मन का अनुकरण करना चाहते हैं।
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प्रभु मैं अपने जीवन में, सच में मसीह के मन के बारे में जागरूक होना चाहती हूँ। और मैं इसके विषय में प्रति दिन के हर क्षण में जागरूक होना चाहती हूँ। तेरी इच्छा के प्रति स्वयं को खोलने में मेरी सहायता कर। और पुराने मन के बातों को निकालने में सहायता कर। ऐसी विचार जो मुझे गलत रास्ते की ओर ले जाते हैं, मैं यीशु मसीह के द्वारा यह माँगती हूँ। आमीन।।