
हे परमेश्वर, अपनी करूणा के अनुसार मुझ पर अनुग्रह कर; अपनी बड़ी दया के अनुसार मेरे अपराधों को मिटा दे। मुझे भली भाँति (बार बार) धोकर मेरा अधर्म दूर कर, और मेरा पाप छुड़ाकर मुझे शुद्ध कर! मैं तो अपने अपराधों को जानता हूँ, और मेरा पाप निरन्तर मेरी दृष्टि में रहता है। मैंने केवल तेरे ही विरूद्ध पाप किया, और जो तेरी दृष्टि में बुरा है, वही किया है; ताकि तू बोलने में धर्मी और न्याय करने में निष्कलंक ठहरे। देख, मैं अधर्म के साथ उत्पन्न हुआ, और पाप के साथ अपनी माता के गर्भ में पड़ा (मैं भी एक पापी हूँ)। देख, तू हृदय की सच्चाई से प्रसन्न होता है; और मेरे मन ही में ज्ञान सिखाएगा। -भजन संहिता 51:1-6
भजन संहिता 51 में राजा दाऊद परमेश्वर से करूणा और क्षमा के लिए गिड़गिड़ाता है क्योंकि बतशेबा के साथ उसके पाप और उसके पति की हत्या के विषय में व्यवहार कर रहा था। विश्वास करें या न करें दाऊद का पाप इस भजन के लिख जाने के पूरे एक वर्ष पहले हुआ था। परन्तु उसने कभी इसका सामना नहीं किया था और उसे जाना नहीं था। वह सत्य का सामना नहीं कर रहा था और जब तक उसने सत्य का सामना करने से इंकार किया वह सच्चाई के साथ पश्चाताप् नहीं कर सका। और जब तक वह सच्चा पश्चाताप् नहीं कर सका परमेश्वर उसे क्षमा नहीं कर सका। इस भाग का छठवाँ पद बहुत ही सामर्थी वचन है। यह कहता है कि परमेश्वर हमारे आन्तरिक हृदय में सत्य की अभिलाषा रखता है। इसका तात्पर्य है यदि हम परमेश्वर की आशीषों को पाना चाहते हैं तो हमें अपने और अपने पाप के विषय में उसके साथ ईमानदार होना चाहिए।