मैं मन का बदलाव चाहता हूँ

मैं मन का बदलाव चाहता हूँ

उसने तुम्हे भी जिलाया, जो अपने अपराधों और पापों के कारण मरे हुए थे जिनमें तुम पहले इस संसार की रीति पर, और आकाश के अधिकार के हाकिम अर्थात् उस आत्मा के अनुसार चलते थे, जो अब भी आज्ञा माननेवालों में कार्य करता है। – इफिसियों 2:1-2

यह सोचने में मुझे बड़ी सात्वना मिलती है कि मैं कौन थी और क्या बन गयी हूँ। यह मेरी सहायता करती है कि मैं निराश न होऊँ जब मैं गलती करती हूँ, या जब पाती हूँ कि मैं अभी भी कुछ बातों पर संघर्ष कर रही हूँ। मुझे बहुत उत्साह मिलता है जब मैं देखती हूँ कि मैं कहाँ से प्रारम्भ की थी, और अब कहाँ पर हूँ।

इफिसियों 2 में पौलुस उन लोगों के बारे में वर्णन करता है जो मसीह से बाहर हैं। उसने लिखा कि अविश्वासी अन्धकार की शक्तियों के पीछे चलते हैं जो शैतान हैं। और वे उस मार्ग पर चलते हैं जहां उनके स्वामी उन्हें लेकर चलता है। इफिसियो 1 पद में वह संकेत करता है कि सभी पाप में मरे हुए थे। परन्तु विश्वासी अब प्रभु यीशु मसीह में जीवित हैं। वह यह कहता है कि हम अपने नीच स्वभाव या शरीर के काम के द्वारा नियंत्रित नहीं किए जाते हैं।

बहुत से मसीहियों को इस क्षेत्र में समस्या होती है। क्योंकि उन्होंने अपने विचारों को नियंत्रित करना नहीं सिखा है। एक बार मेरे पास एक महिला आई और उसने कहा, मेरे सामने यह बात कभी नहीं आयी कि मुझे अपने मन को दिशा और उसे स्वस्थ और सकारात्मक रखने की आवश्यकता है। यदि सेवकगण अपने विचारों को नियंत्रित करने के बारे में प्रचार किया या सिखाया होता तो मैं कभी नहीं सुनती। एक बार मैंने विचारों की सामर्थ के बारे में एक लेख पढ़ा और परमेश्वर ने मुझे कायल किया। तभी मैंने जाना कि मुझे अपने विचारों को परिवर्तित करने की आवश्यकता है।

उस महिला ने कहा कि वह अपने वाहन को एक व्यस्त सड़क के किनारे खड़ी कर रही थी और उसने वहां पर एक चित्र देखा, जिसमें एक कार को कार्टून के रूप में दर्शाया गया था। उसकी बड़ी बड़ी आँखे थीं, जो हेड़ लाईट की जगह पर थी, और उसमें से आसू बह रहे थे, और नीचे लिखा हुआ था कृपया मेरी सहायता करे, मुझे ऑयल बदलने की आवश्यकता है।

जब वह आगे बढ़ी उसने विचार किया मुझे एक मन बदलाव की आवश्यकता है। मैं जैसी हूँ वेसा नहीं रहना चाहती हूं, कि मेरा मन जहां भी चाहे वहां चली जाए। परमेश्वर की सन्तान के रूप में मेरा उत्तरदायित्य यह है कि अपने मन को स्वस्थ और मजबूत बनाऊं।

मैं इस बात को स्पष्ट करना चाहती हूं कि ‘मैं कलीसिया गई‘, उसने कहा, और मैं वर्षों तक वहां पर सक्रिय रही। मैं बहुत सारे वचनों को जानी और मैंने कुछ सार्वजनिक काम भी चर्च में किया। लेकिन मैं अपने विचारों को नियंत्रित न कर सकी। तभी नहीं जब मैं कलीसिया में गीत गायी। मेरा मन अलग अलग विषयों पर उछल कूद करता रहा। हम आनन्द और अनुग्रह के बारे में गीत गा रहे होते, और मैं उन बर्तनों के बारे में सोचती जो अभी भी वाश बेसन में पड़े हुए हैं। या फिर कपड़े जो अभी भी नहीं धूल पाए हैं। या फिर दोपहर के खाने के बारे में कि मैं क्या खाऊँगी।

मैं कलीसिया में उपस्थित हुई और मैं विश्वासयोग्य थी। लेकिन मैं वचन में उपस्थित होने में विश्वासयोग्य नही थी। जब प्रचारकों ने वचन का उद्धरण दिया तब मैंने ध्यान दिया। अक्सर मैं अपना बाइबल स्वयं लेकर जाती थी, लेकिन मैं वास्तव मैं नहीं सोच रही थी कि मैं क्या सुन रही हूँ या मेरी आँखे क्या देख रही है। मैं सही चीजें बाहरी रूप से कर रही थी, लेकिन मैं सही चीजों के बारे में सोच नहीं रही थी। मेरे मन में भारी उथल पूथल थी, और मैं नहीं जानती थी कि इसके विषय में क्या करूँ।

मुझे मन का एक बदलाव चाहिए; उसने अचानक स्वयं से जोड़ के कहा। तभी वास्तव में उसने अपने कहे हुए वचनों पर ध्यान दिया। वह उस बोर्ड में बनी हुई उस कार के समान थी। वह एक परिवर्तन चाहती थी। एक मन परिवर्तन। उसे आवश्यकता थी कि पवित्र आत्मा उसके मन को बदले न कि शैतान। जब उसने प्रार्थना किया तो उसने विश्वास किया कि एक सकारात्मक परिवर्तन होगा।

उसने स्वयं के विषय में सोचा। क्या कुछ ऐसी बात है जिसमें परिवर्तन की आवश्यकता है? या मुझे करने की आवश्यकता है? उसने समझा कि यदि वह जल्दि ही अपने दिन जरिया को नहीं बदली तो शैतान जल्द ही उसके मन में अधिक बुरे और गन्दा विचार डाल देगा।

अगले कई दिनों तक वह वचन को खोजती रही, कि वह अध्ययन या मनन जैसे शब्दों को पाया। वह उन शब्दों को भी ढ़ूँढ़ती रही जो मन या विचारों के बारे में बात करती हों। वह उन वचनों को पढ़ी और उन्हें कागज पर लिखी और उन पर खोज करने लगी।

यहां उनमें से तीन पद हैं। अपनी दृष्टि में बुद्धिमान न होना; यहोवा का भय मानना, और बुराई से अलग रहना। नीतिवचन 3:7।

अपने मन के आत्मिक स्वभाव में नए बनते जाओ। इफिसियों 4:23। मैं तेरी आज्ञाओं की ओर जिन में मैं प्रीति रखता हूँ, हाथ फैलाऊँगा, और तेरी विधिओं पर ध्यान करूँगा। भजन 119:48।

जितना अधिक वह कई चीजो को मनन की, उसे शैतान के साथ उतनी ही कम समस्याओं का सामना करना पड़ा, जब अपने मन के विचारों को वह नियंत्रित कर रही थी। ऐसा ही हम सब के साथ भी होता है। जितना अधिक परमेश्वर पर ध्यान केन्द्रित किया जाए, उतना ही कम शैतान पराजित कर सकता है।

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‘‘महान परमेश्वर आपका धन्यवाद, कि आपने मुझे मन में बदलाव दिया। हमेशा मेरी सहायता करें कि मैं आपकी सेवा अपने हृदय, और अपनी आत्मा और अपने मन से करने के लिए स्वतंत्र रहूँ। मसीह यीशु के सामर्थी नाम से मैं प्रार्थना करती हूँ। आमीन।’’

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