क्योंकि हमारा ऐसा महायाजक नहीं जो हमारी निर्बलताओं में हमारे साथ दुःखी न हो सके; वरन् वह सब बातों में हमारे समान परखा तो गया, तौभी निष्पाप निकला। -इब्रानियों 4:15
मनुष्यजाति के रूप में हमारी गहरी ज़रूरत है, इसे समझा जाना चाहिए। जब हम वह नहीं प्राप्त करते हैं, तब हम अकेलापन महसूस करते हैं। लोगों के दुःख दर्द को बाँटने और सुनने में मैं पाती हूँ कि ‘‘मैं समझती हूँ” शब्द उन्हें बहुत सात्वना देती है। मैंने अपने पति से कहा है, ‘‘चाहे आप मेरी बात को पकड़ न पाएँ तो फिर भी मुझ से कहिए मैं समझता हूँ और यह मुझे अच्छा महसूस कराती है।” एक व्यक्ति च्डै को शायद नहीं समझता परन्तु उसके लिए यह अच्छा है यदि वह अपने पत्नी की स्थिति को समझे। उसे समझे जाने की ज़रूरत है; वह अपने संघर्षों और दर्दों में अकेला नहीं महसूस करना चाहती है।
एक दिन मेरे पति गोल्फ खेलने का प्रयास करते हुए भीतर आए। उनका अच्छा अनुभव नहीं था क्योंकि उनके पैर में चोट लगी थी और सूजन थी। वह उससे बहुत अधिक प्रसन्न नहीं थे। उनका गोल्फ का खेल उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण है, इसलिए मैंने कहा, ‘‘मैं समझती हूँ कि आप कैसा महसूस करते हैं।” मैंने भौतिक रूप से जो कुछ सहायता कर सकती थी उसका प्रस्ताव उन्हें दिया। परन्तु मेरी समझ हर किसी बात से अधिक सहायता करती हुई प्रतीत हुई।
बीते हुए समय में ऐसे समय आए जब मेरा व्यवहार ऐसा था कि, ‘‘इसमें क्या बड़ी बात है? यह तो गोल्फ का एक चक्कर खेलना है। अन्ततः तुम हर समय खेलते रहते हो।” यह व्यवहार तर्क वितर्क को प्रारंभ करता था और हम दोनों के बीच में यह गहरी खाई खोद देता था। वह चाहते थे कि मैं उनकी ज़रूरतों को समझूँ, और मैं चाहती थी कि वे मेरी ज़रूरतों को समझें।
बाइबल में मेरे पसन्दीता पदों में से एक इब्रानियों 4:15 है, जो हमें सिखाता है कि यीशु एक ऐसा महायाजक है जो हमारी कमज़ोरियों और तकलीफों को समझता है, क्योंकि वह हर रीति से परखा गया जैसे हम परखे जाते हैं। फिर भी उसने कभी पाप नहीं किया। केवल यह समझना कि मसीह मुझे समझता है, मुझे उसके और अधिक नज़दीक करता है। यह मुझे उस पर और अधिक भरोसा रखने में सहायता कराता है, यह मुझे अकेलापन महसूस कराने के बजाए संबंधित महसूस कराता है।